प्रभात झा

संपूर्ण विश्व में सभी लोग भगवान को याद करते हैं तो एक स्वर से सीता-राम ही कहते हैं। मां सीता का प्राकट्यस्थल बिहार के सीतामढ़ी से 3-4 किलोमीटर दूर पुनौराधाम में है। प्राकट्यस्थल का कुंड भी मौजूद है और छोटा सा मंदिर भी है।

लेकिन मां सीता के प्राकट्यस्थल का जो भव्य स्वरूप होना चाहिए, उसकी ओर बिहार संस्कृति मंत्रालय और न केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय का विशेष ध्यान जा रहा है। सवाल यही है कि जब अयोध्या में श्रीरामलला का भव्य मंदिर बन रहा है, पुनौराधाम में मां जानकी के प्राकट्यस्थल का जीर्णोद्धार क्यों नहीं हो रहा है। अब समय आ गया है जब पुनौराधाम भारत के पांचवें धाम के रूप में स्थापित किया जाए।

पहले तो लोगों को पता ही नहीं था कि पुनौराधाम है कहां। लेकिन जगतगुरु रामभद्राचार्य ने शास्त्रों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि पुनौराधाम ही मां सीता का प्राकट्यस्थल है। संसद से लेकर सड़क तक यह बात धीरे-धीरे स्थापित हो गई कि पुनौराधाम ही मां जानकी का प्राकट्यस्थल है। जगतगुरु रामभद्राचार्य दस वर्षों से जानकी नवमी पर पुनौराधाम में अनवरत, नि:शुल्क कथा कर यह संदेश दे रहे हैं कि मिथिलावासियों और भारतवासियों मां जानकी प्राकट्यस्थल के जीर्णोद्धार और उसकी भव्यता में सभी लोग सहयोग करें।

सुरवंदिता मिथिला की पावन भूमि

कैलाश से कन्याकुमारी और कामख्या से कच्छ तक संपूर्ण भारत भूमि तीर्थ स्थानों से भरा है। लेकिन मिथिला की भूमि का सदैव से विशेष महत्व रहा है ’ मिथिला की भूमि को ह्यसुरवंदिताह्ण कहा गया है, क्योंकि देवता भी यहां निवास करने के लिए सर्वदा आतुर रहते हैं। पुराणों के अनुसार सनातन के कई पवित्र स्थान मिथिलापुरी में ही हैं ’ मां सीता जी के प्राकट्यस्थल होने के कारण पुण्यारण्य (पुनौराधाम) की पवित्र भूमि परमदर्शनीय और पुण्यदायक हैें।

तीर्थों में पुण्यारण्य (पुनौराधाम) की श्रेष्ठता

धर्मशास्त्रों में तीर्थ के तीन रूपों का वर्णन है-नित्य तीर्थ, भगवदीय तीर्थ और सत तीर्थ े। इसमें पुण्यारण्य (पुनौराधाम) को सनातन से तीनों रूप प्राप्त हैं। भगवती माता सीता जी इसी भूमि से अवतरित हुई थीं, जिससे यह भगवदीय तीर्थ है। पुण्डरीक ऋषि का आश्रम होने से यह सत तीर्थ है।

विशेष फलदायक यज्ञस्थली पुण्योर्वरा (पुनौराधाम)

वृहद विष्णुपुराण के मिथिला खंड में वर्णित है कि हम संसार में प्राणियों की सारी मनोकामनाएं पूरी करने वाली विशेष फलदायक यज्ञ स्थली पुण्योर्वरा (पुनौराधाम) की यात्रा और दर्शन विशेषकर चैत्र श्री रामनवमी और वैशाख श्री जानकी नवमी में मोक्ष की अभिलाषी को करने चाहिए, क्योंकि दोनों तिथियां श्री रामजी का जन्मदिवस और मां सीता जी का प्राकट्य दिवस हैै।

हलेष्ठी यज्ञ

शात्रों में वर्णन है की एक बार संपूर्ण मिथिला में घोर दुर्भिक्ष पड़ गया। अनावृष्टि से मिथिलावासियों में त्राहि-त्राहि मच गई। उस समय मिथिला महाराजा निमि के वंशज राजा जनक राज कर रहे थे। यज्ञ से वर्षा होती है और वर्षा के प्रभाव से अन्न उत्त्पन्न होता है। इससे प्रभावित होकर राजर्षि जनक ने अपने राज्य के विद्वानों, ऋषि-मुनियों और ज्योतिषियों की आपातकालीन सभा बुलाकर भीषण दुर्भिक्ष की विभीषिका से त्राण पाने के उपाय पर विचार-विमर्श किया। सर्वसम्मत निर्णय लिया गया कि राजा जनक को हलेष्ठी यज्ञ करना चाहिए। इसके निमित्त शोध के आधार पर पुण्यारण्य (पुण्डरीक आश्रम) को उपयुक्त स्थान के रूप में चयन किया गया।

राजर्षि जनक का प्राचीन दुर्ग

वृहद विष्णुपुराण के मिथिला माहात्म्य के अष्टम अध्याय में वर्णित है कि राजर्षि जनक का जो प्राचीन दुर्ग था , उसके पारत: पंचकोशी चार विशाल द्वार थे। वे इन दिनों भी वर्तमान जनकपुरधाम से क्रमश: दस मील उत्तर की ओर धनुषा, दस मील दक्षिण की ओर गिरजा स्थान, दस मील पूरब की ओर हरिहरालय महादेव और दस मील पश्चिम जलेश्वरनाथ के नाम से लोक विदित है ’ यह स्पष्ट है कि महाराजा जनक इसी जलेश्वरनाथ(शिव जी का जलशयन स्थल) से पश्चिम भाग में शास्त्रवत अठासी ऋषियों एवं रानी सुनैना सहित तीन योजना के बाद हलेष्ठी यज्ञार्थ पुण्डरीक आश्रम पुण्यारण्य पधारे थे, जहां हलेष्ठी यज्ञ की सिद्धि प्राप्त हुई और मां जानकी का प्राकट्य हुआ।

सीता और सीतामढ़ी

पद्मपुराण में कहा गया है कि जानकी नाम तो जनक जी के वंशानुगत जनक शब्द से रखा गया, लेकिन शास्त्रानुसार उनका नाम सीता होना अपेक्षित है, क्योकि सीत (फार का नुकीला अग्र भाग) और सीता (सिराउर) के संयोग से उत्पत्ति होने के कारण सीता नाम की पुष्टि होती है। जन्म के बाद लौकिक एवं वैदिक रीतियों से वर्षा से बचाने के लिए मड़ई (मढ़ी) में मां सीता जी रखी गर्इं तथा उस स्थान का नाम सीतामढ़ी हुओं।

‘पुंडरीक क्षेत्र’ की महत्ता

पुंडरीक क्षेत्र अर्थात पुनौराधाम, जहां मां जानकी जी का प्राकट्य हुआ, वहां कई पुरातन स्मृतियां हैं, जिनका वर्णन और वहां की भाषाएं का उल्लेख रामायण, पुराणों, संहिताओं एवं इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में वर्णित है, सनातन में अविस्मरणीय-अमिट है।

(लेखक भाजपा के वरिष्ठ सदस्य हैं)