Bhauma Pradosh Vrat 2020/ Bhauma Pradosh Vrat September 2020 : प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस बार प्रदोष व्रत 15 सितंबर, मंगलवार को रखा जाएगा। मंगलवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। कहते हैं कि भौम प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव के साथ-साथ हनुमान जी की भी कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि भौम प्रदोष व्रत रखने से मंगल ग्रह के प्रकोप से मुक्ति मिलती है।
भौम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त (Bhauma Pradosh Vrat Shubh Muhurat)
पूजा का शुभ मुहूर्त – 15 सितंबर, मंगलवार – 06:26 पी एम से 07:36 पी एम तक
भौम प्रदोष व्रत कथा (Bhauma Pradosh Vrat Katha)
प्राचीन काल की बात है। एक वृद्ध स्त्री थी। वह भगवान शिव और हनुमान जी की परम भक्त थी। उनका एक बेटा था। एक दिन हनुमान जी ने वृद्धा की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए साधु का रूप लिया और वृद्धा के घर के बाहर जाकर कहा कि कोई हनुमान भक्त है तो बाहर आए। यह सुनते ही वृद्धा ने घर से बाहर आकर हनुमान जी को प्रणाम किया। साधु ने वृद्धा से कहा हमे बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दो।
वृद्धा जब भोग लेने के लिए घर के अन्दर जाने लगी तब साधु बोले कि हम तुम्हारे बेटे की पीठ पर बना भोजन ही ग्रहण करेंगे। वृद्धा को यह सुनकर बहुत हैरानी हुई लेकिन वह संत भगवान को दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए अपने बेटे को बुलाकर लाई और साधु ने उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाया।
वृद्धा का मन बहुत दुखी था। वह वापस अपने घर के अंदर लौट गई। थोड़ी देर बाद साधु ने वृद्धा को आवाज लगाकर बुलाया और कहा कि अपने बेटे को भी बुलाओ वह भी हमारे साथ भोजन करेगा। इतना सुनकर वृद्धा रोने लगी लेकिन फिर भी साधु के बार-बार कहने पर उन्होंने अपने बेटे को आवाज लगाई। आवाज सुनते ही उनका बेटा जीवित हो गया। तब से ही भौम प्रदोष व्रत को बहुत प्रभावशाली माना जाता है।
भौम प्रदोष व्रत आरती/ शिव आरती (Bhauma Pradosh Vrat Aarti/ Shiv Aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ॐ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ॐ॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ॐ॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ॐ॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ॐ॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालनकर्ता ॥ॐ॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ॐ॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ॐ॥