Pradosh Vrat Ki Katha : प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है। इस बार प्रदोष व्रत 14 अक्तूबर, बुधवार के दिन है। प्रदोष व्रत में प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करना बहुत जरूरी है।
प्रदोष व्रत कथा का महत्व (Pradosh Vrat Katha Importance)
मान्यता है कि प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिव का ध्यान करते हुए जो व्यक्ति प्रदोष व्रत कथा पढ़ता या सुनता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति को प्रदोष व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। व्रत वाले दिन कथा पढ़ने या सुनने से ही व्रत को पूर्ण माना जाता है। इसलिए सभी प्रदोष व्रतियों को प्रदोष व्रत की कथा का पाठ जरूर करना चाहिए।
प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)
एक गांव में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह भगवान शिव की परम भक्त थीं। उसके विवाह के कुछ सालों बाद ही उसके पति का देहांत हो गया। ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ जंगल में रहा करती थी और उसके भरण-पोषण के लिए दिनभर भीख मांगती थी।
एक दिन जब वो भीख मांगकर घर लौट रही थी तब उसे उस नगर का राजकुमार जंगल में भटकता हुआ मिला। राजकुमार के पिता का निधन हो गया था इसलिए वह दर-दर भटक रहा था। मातृत्व की वजह से ब्राह्मणी उसे अपने साथ रखने लगीं।
राजकुमार सालों तक ब्राह्मणी के साथ रहने लगा। एक दिन ब्राह्मणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास गई। उनसे पूछा कि हम दरिद्रता और अभावों से बहुत परेशान हैं। कृपा कर इससे निजात पाने का उपाय बताइए। ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी से प्रदोष व्रत रखने के लिए कहा। ब्राह्मणी ने जीवनभर प्रदोष व्रत रखने का संकल्प लिया।
समय आगे बढ़ने के साथ राजकुमार विवाह योग्य हो गया और एक दिन उसे कहीं जाते हुए एक गंधर्व कन्या पसंद आ गई। राजकुमार बहुत तेजस्वी था। इसलिए गंधर्व कन्या ने भी राजकुमार को देखते ही उससे विवाह करने की इच्छा रखी।
इस बारे में जब गंधर्व कन्या के माता-पिता को पता चला तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई और वह इस रिश्ते के लिए मान गए। राजकुमार ने गंधर्व कन्या से विवाह किया और ब्राह्मणी, उसके पुत्र और अपनी पत्नी के साथ वापस अपने महल में जाकर रहने लगा। प्रदोष व्रत के प्रभाव से दरिद्रता का नाश होने के साथ ही उनके जीवन से सभी अभाव मिट गए।