Pradosh Vrat 2024 Vrat Katha, Kahani, Story in Hindi: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। शास्त्रों में इस दिन का खास महत्व बताया गया है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। यह दिन इनकी पूजा के लिए सबसे उत्तम मानी गई है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन पूजा करने और व्रत रखने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही सभी दुखों का अंत होता है। इस बार प्रदोष व्रत 28 नवंबर 2024, यानी आज रखा जा रहा है। कहा जाता है कि इस दिन पूजा के बाद व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। ऐसे में आइए यहां पढ़ते हैं प्रदोष व्रत की कथा।
प्रदोष व्रत की कथा
प्रदोष व्रत को लेकर कई रोचक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कहानी का जिक्र आज हम करेंगे। यह कहानी प्राचीन समय की है। अंबापुर गांव में एक ब्राह्मणी रहती थी। पति के निधन के बाद वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन चलाती थी। एक दिन वह भिक्षा मांगते हुए घर लौट रही थी, तभी रास्ते में उसे दो छोटे बच्चे मिले। वे दोनों बहुत दुखी और अकेले थे। यह देख ब्राह्मणी को बहुत दुख हुआ और वह सोचने लगी कि आखिर ये बच्चे किसके होंगे। इसके बाद ब्राह्मणी ने उन दोनों बच्चों को अपने घर ले आई और उन्हें अपनी तरह प्यार से पालने लगी। कुछ समय बाद जब वह बच्चे बड़े हो गए तब ब्राह्मणी उन्हें लेकर ऋषि शांडिल्य के पास गई और उनसे यह पूछने लगी कि ये बच्चे किसके हैं और इनके माता-पिता कौन हैं।
इस पर ऋषि शांडिल्य ने बताया कि यह दोनों बच्चे विदर्भ राज्य के राजकुमार हैं। गंदर्भ नामक एक राजा ने उनके राज्य पर हमला किया था और इनका राजपाट छीन लिया था। अब ये राज्य से बाहर हो गए हैं। यह सुन ब्राह्मणी ने ऋषि से पूछा, ‘क्या ऐसा कोई उपाय है जिससे इन बच्चों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल सके?’ ऋषि शांडिल्य ने बताया, ‘आप प्रदोष व्रत करें। इससे इन राजकुमारों की किस्मत बदल सकती है।’
ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत बड़े श्रद्धा और भक्ति से करना शुरू किया। उसके बाद जल्द ही राजकुमारों की मुलाकात अंशुमती नामक एक कन्या से हुई। दोनों राजी हो गए और शादी करने का फैसला किया। अंशुमती के पिता ने राजकुमारों की मदद की और गंदर्भ राजा से युद्ध में उनका साथ दिया। युद्ध में राजकुमारों को जीत मिली और उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया। इसके बाद, राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में एक खास स्थान दिया और उसकी गरीबी दूर हो गई। फिर वह खुशी-खुशी अपना जीवन बिताने लगी।
डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।