Pitru Paksha 2025 Katha In Hindi (पितृ पक्ष कथा इन हिंदी) : हिंदू धर्म में पितृ पक्ष के 15 दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस दौरान अपने पूर्वजों यानी पितरों के प्रति कृतज्ञता, सेवा और तर्पण करते हैं। बता दें कि हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के साथ पितृपक्ष आरंभ हो जाते हैं, तो सर्वपितृ अमावस्या तिथि (Sarvapitri Amavasya 2025) पर समाप्त होते हैं। इस दौरान तर्पण, श्राद्ध, दान आदि से पितरों की आत्मा को शांति, बल, समृद्धि और मुक्ति प्राप्त होती है। इसके साथ ही पितृ दोष के दुष्प्रभाव भी कम होते हैं। अगर आपकी कुंडली में भी पितृ दोष है, तो प्रेमानंद महाराज द्वारा बताई गई इस कथा को सुनना चाहिए या फिर इसका पाठ करना लाभकारी हो सकता है। आइए जानते हैं पितृ पक्ष की कथा….

प्रेमानंद महाराज का एक वीडियो में इस कथा के बारे में विस्तार से बताया है। इस वीडियों में प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि जब मनुष्य भगवान श्री हरि की शरण में जाकर निरंतर भजन करता है, तभी मातृ ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण – इन सभी बंधनों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होता है। यदि व्यक्ति भगवान की शरण में नहीं जाता, भजन नहीं करता, तो उस पर अनेक ऋण बने रहते हैं और अंततः दुर्गति की प्राप्ति होती है।

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ऐसा नहीं कि आप कमाएँ, खाएँ और उसके बाद मर जाएँ तो स्वर्ग प्राप्त कर लेंगे। मनुष्य शरीर इसलिए मिला है कि इन ऋणों को चुकाया जाए। यदि ऐसा नहीं किया, तो जीवन में दुर्गति अवश्य होगी। जब भी किसी व्यक्ति का अवैध धन पकड़ा जाता है, तो उसे पुरस्कार नहीं, बल्कि दंड मिलता है। चाहे धन व्यापार से कमाया हो या परिश्रम से, यदि उसने उसका उचित भाग कर रूप में नहीं दिया तो वह कर चोरी मानी जाती है। इसके लिए उसे कठोर दंड भुगतना पड़ता है।

इसी प्रकार, परिवार – पत्नी, पुत्र, बंधु – ये सब भगवान की देन हैं। यदि आप उनकी सेवा नहीं करेंगे, उनका स्मरण नहीं करेंगे, तो ये भी आपके लिए बंधन बन सकते हैं। अतः आवश्यक है कि भगवान की शरण लेकर उनका स्मरण करें। तब वे स्वयं आपके सभी ऋणों को दूर कर देंगे। एकादश स्कंध में स्पष्ट कहा गया है कि जो भगवान का भजन करता है, उसका कोई ऋण शेष नहीं रहता।

पितृ पक्ष की कथा (Pitru Paksha Katha)

महाभारत में एक सुंदर प्रसंग आता है। जरत कारु नामक एक ब्रह्मऋषि थे। ऋषि और भक्त में अंतर होता है। तपस्या प्रधान ऋषि जैसे दुर्वासा कठोर तप करते थे, किंतु भक्ति से युक्त योगी अलग होते हैं। जरत कारु बाल ब्रह्मचारी थे, जिन्होंने विवाह नहीं किया, गृहस्थ जीवन स्वीकार नहीं किया और न ही संतान प्राप्त की। वे तपस्या में लीन होकर भ्रमण कर रहे थे कि तभी उन्हें कुएं में उल्टा लटके अनेक ऋषि दिखाई दिए। वे केवल एक तंतु से जुड़े थे, जिसे दो चूहे काट रहे थे – एक काला, दूसरा सफेद। यह देखकर वे द्रवित हो उठे। उन्होंने पूछा – “मैं आपकी रक्षा कैसे कर सकता हूँ?” ऋषियों ने बताया कि ये दो चूहे रात और दिन हैं, और हम तुम्हारे पितर हैं। यह तंतु तुम्हारी आयु का प्रतीक है, जो निरंतर कटती जा रही है। तुम अकेले हो, तुम्हारा विवाह नहीं हुआ, कोई संतान नहीं है, इसलिए तुमसे जुड़ा तंतु ही कुल का आधार है। यदि तुम विवाह नहीं करोगे तो हम सब नर्क में गिर जाएँगे।

यह दृश्य देखकर जरत कारु चिंतित हुए। उन्होंने निश्चय किया कि वे विवाह करेंगे ताकि पितरों का उद्धार हो। उन्होंने शर्त रखी कि कोई कन्या स्वयं आए, उसका नाम भी जरत कारु हो, और वे उसका भरण पोषण नहीं करेंगे, न ही कोई प्रश्न पूछेंगे। तभी नागराज वासुकी अपनी बहन जरत कारु को लेकर आए। उन्होंने कहा – “हमारा सौभाग्य होगा यदि आप जैसे तपस्वी इसे स्वीकार करें। मैं स्वयं इसका भरण पोषण करूँगा और शास्त्रसम्मत आराधना में यह सदैव आपके धर्म का पालन करेगी। कभी कोई प्रश्न नहीं करेगी।” जरत कारु ने विवाह स्वीकार कर लिया।

कुछ समय बाद एक संध्या काल में जब वे अपनी पत्नी की गोद में विश्राम कर रहे थे, तब संध्या का समय हो गया। संध्या काल में सोना, भोजन करना, स्वाध्याय करना वर्जित माना गया है। संध्या समय केवल भगवान का स्मरण ही करना चाहिए। पत्नी ने विचार किया कि यदि मैं उन्हें टोका तो वे नाराज होकर मुझे छोड़ देंगे। परंतु धर्म की रक्षा हेतु उसने उन्हें जगाया। जरत कारु क्रोधित हुए और कहा कि “तुमने हमें टोका, इसलिए मैं तुम्हें त्याग करता हूँ।” किंतु पत्नी ने विनम्रता से कहा – “यदि आप संध्या अर्घ्य नहीं देंगे तो आपके जीवन भर की साधना में कलंक लग जाएगा। यह धर्म का सूक्ष्म विषय है। कृपया उठिए।”

उनकी भक्ति देखकर वे संध्या अर्घ देने उठ खड़े हुए। बाद में उनके वंश में आस्तिक मुनि का जन्म हुआ, जिन्होंने जन्मेजय का यज्ञ रोककर संसार को विनाश से बचाया। इस घटना से स्पष्ट है कि एक पितर की तृप्ति के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

अतः यह समझना चाहिए कि केवल तपस्या पर्याप्त नहीं है। भगवान की शरण में जाकर, निरंतर भजन करके ही मनुष्य मातृ ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण – सभी से मुक्त हो सकता है। मूढ़ जन इस गूढ़ सत्य को नहीं समझते, परंतु यही भगवान का वास्तविक आशय है – भक्ति ही जीवन का आधार है, और इसी से मनुष्य दुर्गति से बचकर परमधाम को प्राप्त करता है।

सितंबर माह के दूसरे सप्ताह कई राजयोगों का निर्माण होने वाला है। इस सप्ताह मंगल तुला राशि में प्रवेश करेंगे। इसके अलावा इस सप्ताह त्रिग्रही, बुधादित्य योग, समसप्तक, षडाष्टक, गजलक्ष्मी, नवपंचम, महालक्ष्मी जैसे राजयोगों का निर्माण हो रहा है। ऐसे में कुछ राशि के जातकों को इस सप्ताह विशेष लाभ मिल सकता है। आइए ज्योतिषी सलोनी चौधरी से जानते हैं मेष से लेकर मीन राशि तक के जातकों का कैसा बीतेगा ये सप्ताह। जानें साप्ताहिक टैरो राशिफल

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