Putrada Ekadashi Vrat Katha 2025: वैदिक पंचांग के अनुसार पौष मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पौष एकादशी कहा जाता है। वहीं साल 2025 में यह पावन तिथि 30 दिसंबर को पड़ रही है, जो इस साल की अंतिम एकादशी भी मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने से संतान प्राप्ति होती है। इसके साथ रही हर एक दुख-दर्द और पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है। वहीं इस दिन पूजा के बाद व्रत कथा पढ़ना जरूरी माना जाता है। वर्ना पूजा अधूरी माना जाती है। आइए जानते हैं व्रत कथा के बारे में…

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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi 2025 Vrat Katha)

भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नामक एक राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। लेकिन उनका कोई पुत्र नहीं था। राजा की पत्नी अपने राज्य को एक राजकुमार न दे पाने के कारण  सदैव चिंतित रहा करती थी। वहीं दूसरी ओर राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे, क्योंकि उन्हें इस बात की परेशानी थी कि  इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा भी हमेशा मायूस रहता था। उसके पास भाई, अपार धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री हर एक चीज होने के बाद उसे संतोष नहीं होता था।

राजा सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझे कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।

राजा चिंतित होकर पुत्र प्राप्ति के लिए हर एक प्रयास करने लगा। एक दिन वह अपने नगर के एक खूबसूरत सरोवर के पास पहुंचा। जहां पर कुछ ऋषि-मुनि मौजूद थे। वहां पहुंचकर राजा से उन्हें प्रणाम किया।

चिंतित और मायूस राजा को देखकर ऋषि- मुनियों ने कहा- हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। इस बात पर राजा ने मुनियों से पूछा- महाराज आप कौन हैं और किसलिए यहां आए हैं। कृपा करके हमें बताइए। इस प्रश्न पर मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं। यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले- हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा।

मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का ‍व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।

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