Parshuram Jayanti 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के साथ परशुराम जयंती मनाई जाती है। बता दें कि भगवान परशुराम विष्णु जी के छठे अवतार है। उनका जन्म प्रदोष काल में हुआ था। परशुराम के बारे में सतयुग से लेकर कलयुग तक कई कथाएं मिलती है। इतना ही नहीं मान्यता है कि कलयुग में मौजूद 8 चिरंजीवी में से एक परशुराम जी है, जो आज भी धरती पर मौजूद है। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों भगवान विष्णु को लेना पड़ा था परशुराम जी के रूप में जन्म। इसके साथ ही जानें उनका कैसे पड़ा परशुराम नाम…
परशुराम जयंती 2024 पूजा मुहूर्त
सुबह पूजा का समय – सुबह 07 बजकर 14 मिनट से सुबह 08 बजकर 56 मिनट तक
प्रदोष काल पूजा समय – शाम 05 बजकर 21 मिनट से रात 07 बजकर 02 मिनट तक
कौन है परशुराम जी?
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। उनके पिता का नाम जमदग्नि तथा माता का नाम रेणुका था। इसके साथ ही परशुराम चार भाइयों रुक्मवान, सुषेण, वसु और विश्वावसु के बाद थे। वह अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे।
पिता के कहने पर कर दिया था मां का वध
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता रेणुका स्नान करने के लिए गई थी। जब वह स्नान करके लौट रही थी, जो उन्होंने राजा चित्ररथ को जलविहार करते देखा। वह उनकी खूबसूरती को देखकर माता का मन विचलित हो गया। ऐसे में जब वह घर पहुंची , तो उन्हें देखकर महर्षि जमदग्नि समझ गए कि क्या हुआ। उन्होंने अपने पुत्रों से कहा कि अपनी मां का वध कर दें। लेकिन किसी ने भी ऐसा करने से मना कर दिया। ऐसे में क्रोधित होकर जमदग्नि ने अपने 4 पुत्रों को विचार शक्ति खत्म होने का शाप दे दिया। ऐसे में परशुराम वहां पहुंचे, तो महर्षि जमदग्नि ने उनसे मां का वध करने को कहा। उन्होंने अपने पिता की आज्ञा मानकर माता का वध कर दिया। ऐसे में महर्षि जमदग्नि काफी प्रसन्न हुआ और परशुराम से तीन वरदान मांगने को कहा। तब उन्होंने पहला वरदान मां को जीवित करना, दूसरा भाईयों को सही करना और तीसरा वरदान मांगा कि वह कभी पराजय न हो और लंबी आयु प्राप्त हो।
इस कारण पड़ा परशुराम नाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार, परशुराम का पहले नाम राम था। लेकिन महादेव ने उन्हें शस्त्र विद्या दी थी। शस्त्र विद्या के बाद प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें ‘फरसा’ दिया। परशु मिलने के कारण उनका नाम परशुराम पड़ गया। इसके साथ ही शिव जी ने उन्हें श्रेष्ठ योद्धा का वरदान दिया था।
क्यों हुआ था परशुराम का जन्म?
कहा जाता है कि परशुराम का जन्म ऋषि-मुनियों की रक्षा के लिए हुआ था। इसके साथ ही वह युद्ध कला में माहिर थे। उन्होंने भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे कई योद्धाओं को शिक्षा दी। मान्यताओं के अनुसार, कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि के अवतार में जन्म लेंगे। तब भी परशुराम उन्हें युद्ध की नीतियां सिखाएंगे।
ब्राह्मण कुल में होते हुए परशुराम में है क्षत्रियों वाले गुण?
बता दें कि भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ है। लेकिन उनका स्वभाव देखते हुए वह क्षत्रिय कुल के माने जाते हैं। पह अत्यधिक क्रोधी स्वभाव के माने जाते हैं। इसी क्रोध के कारण उन्होंने भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया।
शास्त्रों के अनुसार, महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। विवाह के बाद सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने और अपनी माता के लिए एक पुत्र की कामना की। ऐसे में महर्षि भृगु ने उन्हें दो फल दिया और कहा कि तुम गुलर के पेड़ और तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करके ये फल खा लें। लेकिन सत्यवती और उनकी मां ने महर्षि भृगु के इस नियम का बिल्कुल भी पालन नहीं किया, जिससे महर्षि भृगु काफी क्रोधित हुए और उन्होंने सत्यवती से कहा कि तुमने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है। इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों के साथ पैदा होगा और तेरी मां का पुत्र क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण वाले गुणों के साथ पैदा होगा। ऐसे में सत्यवती और उनकी मां ने अपनी भूल स्वीकार की और महर्षि भृगु से प्रार्थना की मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो चाहे मेरा पौत्र ऐसे गुणों के साथ पैदा हो। ऐसे में महर्षि भृगु ने उनकी बात स्वीकार कर ली और कुछ समय के बाद सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि मुनि का जन्म हुआ था। बाद में जमदग्नि मुनि का विवाह रेणुका माता के साथ किया था। जिनसे परशुराम जी का जन्म हुआ था।