राजस्थान की अरावली पर्वतमाला के मध्य में अनोखा परशुराम महादेव मंदिर स्थित है। माना जाता है कि त्रेता युग में परशुराम इस मंदिर में बनी गुफा के रास्ते से यहां आए थे। यहां बैठकर उन्होंने भगवान शिव की आराधना की और उन्हें प्रसन्न करके अमरत्व का वरदान व प्रसिद्ध फरसा सहित कई दिव्यास्त्र प्राप्त किए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण परशुराम ने इसी फरसे से एक बड़ी चट्टान को काटकर किया था। बाद में, इस मंदिर का नाम परशुराम महादेव मंदिर पड़ा। गुफा का ऊपरी भाग गाय के थन के समान प्रतीत होता है। इस गुफा मंदिर के अंदर ही भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं।

शिवलिंग के ऊपर गोमुख है, जहां से प्राकृतिक रूप से शिवलिंग का जलाभिषेक होता है। मंदिर से कुछ दूरी पर मातृकुंडिया नाम का एक स्थान है। परशुराम ऋषि-मुनियों के कहने पर मातृहत्या के दोष निवारण के लिए यहां आए थे। उनको अरावली पवर्तमालाओं में मौजूद मातृकुंडिया नदी में स्नान करके शिव की आराधना करनी थी। यह स्थान आज राजस्थान के चितौड़गढ़ जिले में आता है। वह स्नान करके गुफा के रास्ते आए थे। गुफा फिलहाल बंद हो चुकी है।

अब गुफा में महज 5-7 मीटर तक ही अंदर जा सकते हैं। यह मंदिर दो जिलों राजसमंद व पाली की सीमाओं के बीच है। मंदिर का परिसर करीब तीन किलोमीटर परिधि में फैला हुआ है। पहाड़ी पर बसे इस गुफा मंदिर तक पहुंचने के लिए 500 सीढ़ियां हैं। नीचे तीन कुण्ड हैं, जो 12 महीने पानी से भरे रहते हैं। यहां आने के दो रास्ते हैं। एक मारवाड़ वालों के लिए जो 1600 मीटर का है और दूसरा मेवाड़ से आने वालों के लिए 1200 मीटर का है। यह मंदिर समुद्र से 4000 फुट की ऊंचाई पर हैं।

पहाड़ी पर बसे इस गुफा मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी पर करीब 2-2.5 किमी की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। इसी कारण, इस मंदिर गुफा तक पहुंचने के लिए एक छोटा ट्रेकिंग अनुभव भी लिया जा सकता है। यहां भगवान गणेश का एक पवित्र मंदिर और नौ कुंड भी हैं। इन कुंडों की सबसे खास बात यह है कि ये कभी सूखते नहीं हैं।

बारिश के दिनों में यहां सुन्दर माहौल बन जाता है। नजदीक ही कुम्भलगढ़ राष्ट्रीय उद्यान है। यह कुम्भलगढ़ दुर्ग से 10 किलोमीटर, पाली से 120 और रणकपुर से सात किलोमीटर की दूरी पर है। इसे राजस्थान का अमरनाथ धाम भी कहा जाता है। गुफा की दीवार पर एक राक्षस की छवि अंकित है। माना जाता है कि इस राक्षस को भगवान परशुराम ने मारा था। पहाड़ी के दुर्गम रास्ते से होते हुए भक्त यहां शिवलिंग के दर्शन के लिए आते हैं।

महाशिवरात्रि और परशुराम जयंती के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। प्राकृतिक दृष्टि से देखें तो मंदिर का पहाड़ी स्थान काफी खूबसूरत है। एक श्रद्धालु ओम प्रकाश गोस्वामी ने बताया कि आत्मिक और मानसिक शांति के लिए यह जगह आदर्श मानी जाती है। भादों और सावन के महीनों में यहां बेहद सुंदर माहौल बन जाता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है और कल-कल बहते झरने और भी सुंदर हो जाते हैं। परशुराम के इस गुफा मंदिर को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार वही व्यक्ति भगवान बदरीनाथ के कपाट खोल सकता है जिसने परशुराम महादेव मंदिर के दर्शन किए हों।

एक अन्य मान्यता के अनुसार यहां मौजूद शिवलिंग में एक छिद्र है, जिसमें पानी के हजारों घड़े डालने पर भी वह छिद्र नहीं भरता जबकि दूध का अभिषेक करने पर उस छिद्र के अंदर दूध नहीं जाता। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह वही स्थान है जहां परशुराम ने कर्ण को शस्त्र शिक्षा दी थी। यहां सावन महीने की छठ को मेला आयोजन होता है, जो दो महीने तक चलता है। दो महीने के दौरान यहां प्रतिदिन 30 हजार के आसपास श्रद्धालु आते हैं।

परशुराम गुफा मंदिर कुंभलगढ़ किले से नौ किमी की दूरी पर सादरी-परशुराम गुफा रोड पर स्थित है। आप यहां तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां उदयपुर हवाई अड्डा है। रेल मार्ग के लिए आप फलना या रानी रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। आप चाहें तो यहां सड़क मार्ग से भी पहुंच सकते हैं। उदयपुर के रास्ते आप यहां बस या टैक्सी के से आसानी से पहुंच सकते हैं। श्रद्धालुओं के के लिए यहां दो धर्मशालाएं बनी हुई हैं जिनकी क्षमता 1200 तीर्थयात्रियों की है।