उत्तराखंड देवभूमि हर और हरि की भूमि मानी जाती है। हर यानी भगवान शिव और हरि यानी भगवान विष्णु की तप, कर्म और लीला भूमि है उत्तराखंड। राज्य को केदारनाथ धाम होने के कारण भगवान शिव और बदरीनाथ धाम होने के कारण भगवान विष्णु का वास स्थल माना जाता है। जिस तरह से पंच केदारों का अपना एक विशिष्ट धार्मिक महत्त्व है और उनकी पुनर्स्थापना आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने की थी, इसी तरह से आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने पंच बदरी की पुनर्स्थापना की।
बदरीनाथ धाम
चारों धामों में बदरीनाथ धाम का विशेष महत्त्व है। आठवीं सदी में आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने बदरीनाथ धाम की स्थापना की थी। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री नारायण की शालिग्राम शिला से बनी चतुर्भुज मूर्ति स्थापित है, जो कि ध्यान मुद्रा में हैं। बदरीनाथ धाम में नर और नारायण के विग्रह की पूजा होती हैं और यहां पर अचल ज्ञान ज्योति के रूप में अखंड दीप सदा प्रज्जवलित होता रहता है।
योग-ध्यान बदरी
पांडुकेश्वर में गोविंद घाट के पास अलकनंदा नदी के किनारे भगवान श्री नारायण योग-ध्यान बदरी के रूप में विराजमान है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की शालिग्राम शिला से निर्मित स्वयं-भू प्रतिमा स्थापित है। यहां श्रीहरि भगवान विष्णु योग और ध्यान मुद्रा में श्रद्धालुओं को दर्शन देकर उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं। योग-ध्यान बदरी धाम का मंदिर भगवान बदरीनाथ मंदिर के समान प्राचीन माना जाता है। मान्यता है कि पांडुकेश्वर में पंच पांडवों का जन्म हुआ था।
भविष्य बदरी
आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के द्वारा निर्मित इस मंदिर में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है। इस मंदिर के कपाट बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने और बंद होने के साथ ही खुलते और बंद होते हैं। स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित है कि घोर कलयुग होने पर जोशीमठ के पास स्थित जय और विजय नाम के दो पर्वत आपस में जुड जाएंगे, तब श्रद्धालु भविष्य बदरी में भगवान बदरी विशाल के दर्शन कर सकेंगे।
आदि बदरी
आदि बदरी मंदिर कर्णप्रयाग से कुमाऊं को जाने वाले मार्ग में है। इस मंदिर में भगवान श्रीहरि की एक मीटर ऊंची प्रतिमा है।
इस मंदिर में सोलह अन्य छोटे मंदिरों का समूह स्थित है जहां माता लक्ष्मी, श्री गणेश, श्री नर-नारायण, भगवान श्री राम के भी दर्शन होते हैं।
वृद्ध बदरी
पंच बदरी मंदिरों में भगवान विष्णु के वृद्ध रूप का वर्णन आता है। वृहद बदरी मंदिर जोशीमठ से सात किलोमीटर पहले अणि मठ गांव में है। यह मंदिर साल भर खुला रहता है। यहां देव ऋषि नारद ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी और भगवान विष्णु ने उन्हें भगवान बदरी नारायण के वृद्ध रूप में दर्शन दिए थे। इसलिए यहां पर भगवान श्री विष्णु की वृद्ध रूप में प्रतिमा है तभी से यह मंदिर वृद्ध बदरी के रूप में विख्यात है।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और दशनामी संप्रदाय से जुडे पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव महंत रविन्द्र पुरी महाराज का कहना है कि पंच बदरी मंदिरों की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि इन मंदिरों की स्थापना शैव मत के अनुयायी आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने की थी। इस तरह से आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने अपने जीवनकाल में शैव और वैष्णव मत के अनुयायियों को एकजुट करने का ऐतिहासिक कार्य कर सनातन धर्म को और अधिक सुदृढ़ करने का प्रयास किया।
पंच बदरी धामों के अंतर्गत बदरीनाथ धाम, योग-ध्यान बदरी, भविष्य बदरी, आदि बदरी और वृद्ध बदरी शामिल हैं, जिनमें से योग-ध्यान बदरी तथा वृद्ध बदरी धाम साल भर खुले रहते हैं। जबकि आदि बदरी धाम के कपाट केवल एक महीने के लिए ही पौष माह में बंद किए जाते हैं और बदरीनाथ और भविष्य बदरी धामों के कपाट शीतकाल के छह महीनों के लिए बंद किए जाते हैं। मान्यता है कि पंच बदरी धामों के दर्शन करने से श्रद्धालुओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है।