भारत प्राचीन काल से ही पवित्र स्थानों, तीर्थों, सिद्धपीठों, मंदिरों एवं देवालयों से सुसज्जित एवं सुशोभित रहा है। इसी शृंखला के तहत वृंदावन में यमुना नदी के किनारे स्थित राधाबाग में अति प्राचीन सिद्धपीठ के रूप में मां कात्यायनी देवी विराजमान हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि वृन्दावन में ही मां भगवती देवी के केश गिरे थे। आर्यशास्त्र, ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं आद्या स्तोत्र आदि कई स्थानों पर इसका उल्लेख है। श्री कात्यायनी पीठ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक प्राचीन सिद्धपीठ है।

श्रीमद् भागवत में भगवती कात्यायनी के पूजन द्वारा भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने के साधन का सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है। यह व्रत पूरे मार्गशीर्ष के महीने में होता है। भगवान श्री कृष्ण को पाने की लालसा में ब्रजांगनाओं ने यहां श्री कात्यायनी देवी का पूजन किया था। आज लाखों श्रद्धालु सम्पूर्ण भारत वर्ष से यहां वर्षभर आते हैं। वर्ष 1923 के फरवरी माह में बनारस, बंगाल तथा भारत के विभिन्न सुविख्यात प्रतिष्ठित वैदिक याज्ञिक ब्राह्मणों द्वारा वैष्णवीय परंपरा से इस मंदिर की प्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण कराया गया था। मां कात्यायनी के साथ-साथ पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेश की मूर्तियो की भी इस मंदिर में प्रतिष्ठा की गई। यहां एक तरफ जहां साक्षात मां कात्यायनी अपनी अलौकिकता को लिए विराजमान है वहीं दूसरी ओर सिद्धिदाता श्री गणेश एवं अद्धर्नारीश्वर एक प्राण दो देह को धारण किए हुए विराजमान हैं। मंदिर के ही एक नियमित उपासक दीपक कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि छठे नवरात्रि पर मां कात्यायनी शक्ति पीठ में श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा रहता है और इस दिन विशेष पूजा का प्रावधान भी रहता है।

वह स्थान जहां कृष्ण ने राधा को अपने नारायण रूप के दर्शन कराए
दिल्ली राजमार्ग पर मथुरा में छाता के निकट एक देवी पीठ है नरी सेमरी। इसे मथुरा व आगरा के निकटवर्ती क्षेत्रों में कुलदेवी माना जाता है। नरी सेमरी बृज रक्षिका माता का मंदिर है। मंदिर में तीन मूर्तियां हैं जो सफेद, काले व सांवले रंग की हैं। मथुरा गजेटियर व ग्रंथों में खोजने पर इसके संबंध में एक विशिष्ट कथा का पता चलता है। वस्तुत: नरी सेमरी शब्द नारी श्यामली या नर-श्यामली का अपभ्रंश रूप है जिसका अर्थ नर-नारायण से है। इसीलिए, यह स्थल नर-नारायण वन के नाम से भी जाना जाता है। ये मूर्तियां वास्तव में राधा, श्री कृष्ण व ललिता की हैं। काले कृष्ण, सांवली ललिता व गोरी राधा। माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां पर भगवान श्री कृष्ण ने राधा को अपने नारायण रूप के दर्शन कराए थे।

इस संबंध में एक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार राधा श्री कृष्ण से रूठकर इस वन में चली आईं। ललिता के कहने पर श्री कृष्ण मनाने के लिए सुन्दर सांवली वीणा-वादिनी स्त्री का रूप रखकर वीणा बजाते हुए यहां आए। राधा के पूछने पर अपने को श्यामली सखी बताकर उनके मनोरंजन के लिए मनोविनोद करते हुए साथ रहने लगे। कुछ समय पश्चात राधा ने उन्हें पहचान लिया परन्तु तब उनकी अप्रसन्नता समाप्त होकर वह प्रकृतिस्थ हो चुकीं थीं। तब श्री कृष्ण ने उन्हें अपने नारायण रूप का ज्ञान कराया। इस प्रकार यह स्थान नारी श्यामली या नरी-श्यामली, नरी-सांवरी और कालान्तर में नरी सेमरी कहलाया।

एक दूसरी कथा यह भी है…
यहां देवी की स्थापना के संबंध में किंवदंती हैं कि आगरा के रावतपाड़ा निवासी सेठ धांधू भगत नगरकोट वाली देवी के बड़े भक्त थे। उनकी अनन्य भक्ति से मां उन पर विशेष प्रसन्न रहती थीं। एक दिन धांधू भगत ने नगरकोट वाली माता से अपने साथ आगरा चलने का अनुरोध किया था, जिसे मां ने स्वीकारा और कहा कि तुम अंतिम पड़ाव तक पहुंचने से पहले मुझे पीछे मुड़कर नहीं देखोगे। यदि ऐसा हुआ तो मैं वहीं पर स्थिर हो जाऊंगी। मां नगरकोट से चल पड़ी। काफी दूरी तक चलने के बाद ग्राम नरी सेमरी के निकट घने जंगलों में धांधू भगत को शंका हुई तो उसने पीछे मुड़कर देख लिया। तभी मां अपने दिए गए वचन के अनुसार वहीं घने जंगलों में स्थिर हो गई। तभी से यहां इस मां की पूजा की जाती रही है।