Nirjala Ekadashi Vrat Katha, Vidhi And Muhurat: साल में आने वाली 24 एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने का महत्व खुद महर्षि वेदव्यास ने भीम को बताया था। यह व्रत काफी कठिन है जिसे निर्जला रहकर रखा जाता है। माना जाता है कि इस एक एकादशी का व्रत रखने से सभी एकादशी व्रतों के बराबर पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। इसे पाण्डव एकादशी, भीमसेनी एकादशी या फिर भीम एकादशी भी कहा जाता है।

व्रत विधि: इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक अन्न व जल कुछ ग्रहण नहीं किया जाता। इस दिन अन्न, वस्त्र, जूती आदि का अपनी क्षमतानुसार दान किया जाता है। इस एकादशी पर जल से भरे घड़े को भी वस्त्र से ढककर दान किया जाता है। चाहें तो स्वर्ण दान भी कर सकते हैं। जरूरतमंदों की सहायता जरूर करें। पूजा के समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करना चाहिये। साथ ही निर्जला एकादशी व्रत की कथा भी जरूर पढ़ें या सुनें। फिर द्वादशी के सूर्योदय के बाद पूजा करने के उपरान्त विधिपूर्वक ब्राह्मण को भोजन करवाएं। फिर खुद अन्न व जल ग्रहण करें।

Nirjala Ekadashi Vrat Katha: बिना इस व्रत कथा को पढ़े निर्जला एकादशी व्रत माना जाता है अधूरा

निर्जला एकादशी 2020 मुहूर्त: 02 जून को ये व्रत रखा जायेगा। एकादशी तिथि का प्रारंभ दोपहर 02:57 बजे (1 जून) से होगा और इसकी समाप्ति दोपहर 12:04 बजे (2 जून) पर होगी। व्रत पारण का समय 3 जून को प्रात: 05:11 बजे से सुबह 08:53 बजे तक होगा।

निर्जला एकादशी कथा: पाण्डवों में दूसरा भाई भीमसेन खाने-पीने का अत्यधिक शौक़ीन था और अपनी भूख को नियन्त्रित करने में सक्षम नहीं था इसी कारण वह एकादशी व्रत को नही कर पाता था। भीम के अलावा सभी पाण्डव भाई और द्रौपदी साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे। भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान था। भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहा है। इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गया तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी और पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।

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