महाशिवरात्रि 2018 व्रत कथा: हिंदू पंचाग के अनुसार हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहा जाता है। फाल्गुन माह की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। गरुड़पुराण, स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, अग्निपुराण आदि पुराणों में इस दिन की महत्वता बताई गई है। इस दिन श्रद्धालु भगवान शिव का उपवास करके बेल पत्तियों से शिव की पूजा करते हैं और रात्रि भर जागरण करके अपने लिए पुण्य इकठ्ठा करते हैं। शिवरात्रि के प्रचलित सभी पौराणिक कथाओं में प्रचलित कथाओं में नीलकंठ की कहानी सबसे ज्यादा चर्चित मानी जाती है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान कालकेतु विष निकला था। भगवान ने संपूर्ण ब्रह्माण की रक्षा के लिए स्वयं ही सारा विष पी लिया था, जिस कारण उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना गया। एक अन्य मान्यता के अनुसार फाल्गुन माह का 14 वां दिन भगवान शिव का प्रिय दिन माना जाता है, इसी कारण से इस दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। भगवान शिव ने इसी दिन माता पार्वती के साथ विवाह किया था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिंग के रुप में प्रकट हुए थे। माना जाता है कि शिव लिंग की पूजा सबसे पहले भगवान विष्णु और ब्रह्म देव द्वारा की गई थी। शिवरात्रि को भगवान शिव और शक्ति के अभिसरण का पर्व माना जाता है। एक कथा के अनुसार भगवान शिव के क्रोध के कारण पूरी पृथ्वी जलकर भस्म होने ही वाली थी कि माता पार्वती ने भगवान शिव की प्रार्थना करके उन्हें प्रसन्न किया और उनका क्रोध शांत किया। इस मान्यता के अनुसरा हर माह की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को भगवान शिव की आराधना की जाती है। इस दिन को शिव रात्रि कहा जाता है।

अन्य प्रचलित कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच में मतभेद हो जाता है। मतभेद होता है कि कौन सबसे श्रेष्ठ है। इस बात का हल निकालने के लिए भगवान शिव एख अग्नि स्तंभ के रुप में प्रकट होते हैं और विष्णु और ब्रह्मा जी से कहते हैं कि इस स्तंभ का आखिरी और शुरुआती छोर बताएं। वहां ब्रह्मा जी को उनकी गलती का अहसास होता है। भगवान विष्णु और ब्रह्म देव भगवान शिव से क्षमा मांगते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव का पूजन करने से मन में आई कुंठा, अहंकार आदि खत्म हो जाता है।