Navratri 2018 1st Day Maa Shailputri Vrat Katha, Puja Vidhi: माता दुर्गा को शक्ति की अधिष्ठीत्री कहा जाता है। दुर्गा जी की उपासना का महापर्व 10 अक्टूबर, बुधवार से आरंभ हो रहा है। हिंदू पंचांग के मुताबिक शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल मास की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक रहता है। बता दें कि दुर्गा मां की आराधना का पर्व साल में कुल चार बार आता है। लेकिन इसमें दो अवसरों को ही अत्यन्त शुभकारी माना गया है। प्रथम नवरात्रि चैत्र मास में शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होकर रामनवमी तक चलती है। वहीं, शारदीय नवरात्र आश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर विजयदशमी के दिन तक रहती है। इन्हें महानवरात्रि भी कहा जाता है। नवरात्रि पर लोग पूजा के समय व्रत कथा का पाठ भी करते हैं। आप इस व्रत कथा का पाठ करके माता का आशीर्वाद पा सकते हैं।

व्रत कथा: एक नगर में एक ब्राह्माण रहता था। वह मां दुर्गा का परम भक्त था। उसकी एक कन्या थी, जिसका नाम सुमति था। वह ब्राह्मण रोजाना पूरे विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करता था। सुमति भी प्रतिदिन इस पूजा में भाग लिया करती थी। एक दिन सुमति खेलने चली गई और मां दुर्गा की पूजा में शामिल नहीं हो सकी। यह देख पिता को गुस्सा आ गया और क्रोधवश उसके पिता ने कहा कि वह उसका विवाह किसी दरिद्र और कोढ़ी से करेगा। पिता की बात सुनकर सुमति दुखी हो गई। अपनी बात के अनुसार ब्राह्माण ने अपनी कन्या का विवाह एक कोढ़ी के साथ कर दिया।

सुमति अपने उस व्यक्ति के साथ विवाह कर चली गई। जहां उसे पति के घर जाकर बहुत दुखी होना पड़ा। वह पति का घर न होने के कारण उसे वन में घास के आसन पर रात बड़े कष्ट में बितानी पड़ी। सुमति की इस दशा को देख माता भगवती उसके सामने प्रकट हुईं। और सुमति से बोलीं, ‘हे कन्या मैं तुम पर प्रसन्न हूं’ मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं, मांगों क्या मांगती हो। इस पर सुमति ने पूछा आप मुझ पर क्यों प्रसन्न हो?

इस पर देवी ने बताया- मैं तुम पर पूर्वजन्म के तुम्हारे पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं। तुम पूर्व जन्म में भील की पतिव्रता स्त्री थी। एक दिन तुम्हारे पति भील द्वारा चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ कर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तुम्हें और तुम्हारे पति को भोजन भी नहीं दिया था। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिया। इसलिए नौ दिन तक नवरात्र व्रत का फल तुम्हें प्राप्त हुआ। इसलिए उस व्रत के प्रभाव के कारण मैं तुम्हें नोवांछित वरदान दे रही हूं। इसके बाद कन्या ने पति का कोढ़ दूर करने का वचन मांगा। जिसके बाद माता ने कन्या की यह इच्छा शीघ्र पूरी कर दी। उसके पति का शरीर माता भगवती की कृपा से रोगहीन हो गया।