Navratri 2018 7th Day, Maa Kalratri Puja Vidhi, Vrat Katha, Mantra: नवरात्रि का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। दुर्गा पूजा आरंभ हो चुकी है। पंडालों में माता दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जा चुकी हैं। समस्त वातावरण मां की भक्ति में डूबा हुआ नजर आ रहा है। दुर्गा जी का सातवां स्वरूप कालरात्रि है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है। इनके बाल बिखरे हुए हैं तथा इनके गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ हैं जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे कांटा धारण किया हुआ है।
इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है। इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहते हैं।
महत्व: मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है। माता कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं। मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं। कहते हैं कि श्रद्धा के साथ आराधना करने वाले भक्तों की इच्छा जरूर पूरी होती है। कहते हैं कि सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोक मुक्त हो सकता है।
मां कालरात्रि का मंत्र:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
कथा: एक प्रचलित कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।