राज सिंह
आमतौर पर यही धारणा है कि साधु संतों की भूमिका केवल धर्म का प्रचार प्रसार करने तक ही सीमित रही है। बहुत कम लोग जानते हैं कि स्वतंत्र भारत जिन 562 छोटी-बड़ी रियासतों से मिलकर बना है ,उनमें से दो रियासतों पर बैरागी साधुओं ने लगभग 200 वर्ष तक राज किया है और वे कुशल राजा एवं योद्धा रहे हैं।
ब्रिटिश कालीन भारत में जिन रियासतों पर बैरागी साधुओं का शासन रहा है उनके नाम हैं, नांदगांव और छुईखदान। ये दोनों ही रियासतें वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले में हैं।

एक रोचक तथ्य यह भी है कि इन दोनों ही रियासतों के राजा पंजाब से गए थे और दोनों ही रियासतों के साधु राजा निर्मोही अखाड़े और निंबार्क संप्रदाय से संबंध रखते थे। छुईखदान रियासत की स्थापना वर्ष 1750 में रूप दास नाम के एक बैरागी संत ने की थी। महंत रूप दास, वीर बंदा बैरागी के प्रथम सैनिक मुख्यालय हरियाणा के सोनीपत जिले के सेहरी खांडा गांव के थे। वर्ष 1709 में जब महान योद्धा वीर बंदा बैरागी ने सूकरी खांडा के निर्मोही अखाड़ा मठ में अपनी सेना का गठन किया तो उस वक्त महंत रूप दास केवल 11 वर्ष के थे।

11 वर्ष के इस साधु बालक ने बंदा बैरागी से युद्ध विद्या सीखी और इसके बाद वे नागपुर जाकर मराठा राजाओं की सेना में शामिल हो गए। महंत रूप दास एक कुशल योद्धा बने और वर्ष 1750 में मराठों ने उनको कोडंका नामक जमीदारी पुरस्कार के रूप में दी। महंत रूप दास कृष्ण भक्त थे इसलिए उन्होंने अपनी पूरी रियासत में पारस्परिक अभिवादन के लिए जय गोपाल शब्दों का प्रयोग किया।

देश की स्वतंत्रता प्राप्ति तक बैरागी साधुओं ने इस राज्य पर शासन किया और 1 जनवरी 1948 को छुईखदान रियासत का स्वतंत्र भारत में विलय हो गया। विलय की संधि पर आखिरी राजा महंत ऋतुपरण किशोर दास ने हस्ताक्षर किए। वर्ष 1952 तथा 1957 के आम चुनाव में महंत ऋतुपरण किशोर दास मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। छुईखदान में बैरागी राजाओं का राजमहल आज भी बहुत अच्छी स्थिति में है।

बैरागी साधुओं की दूसरी रियासत थी नांदगांव। जिसकी राजधानी राजनांदगांव में थी। इस रियासत की स्थापना महंत प्रहलाद दास बैरागी ने वर्ष 1765 में की। प्रहलाद दास बैरागी, अपने साथियों के साथ सनातन धर्म का प्रचार करने के लिए पंजाब से छत्तीसगढ़ आए थे। अपनी यात्रा का खर्च निकालने के लिए ये बैरागी साधु, पंजाब से कुछ शाल भी अपने साथ ले आते और उन्हें छत्तीसगढ़ में बेचकर अपनी यात्रा का खर्च चलाते।

बिलासपुर के पास रतनपुर में मराठा राजाओं के प्रतिनिधि बिंबा वजी का महल था। स्थानीय लोग बिंबाजी को भी राजा के नाम से ही जानते थे। बिंबाजी, महंत प्रहलाद दास बैरागी के शिष्य बन गए और उन्हें अपनी पूरी रियासत में 2 प्रति गांव के हिसाब से धर्म चंदा लेने की इजाजत दे दी।

धीरे-धीरे ये बैरागी साधु धनी हो गए और उन्होंने कई आसपास के जमींदारों को ऋण देना आरंभ कर दिया। जो जमींदार ऋण नहीं चुका पाए उनकी जिम्मेदारी इन साधुओं ने जब्त कर ली और धीरे-धीरे चार जमीदारियां उनके पास आ गई । जिनको मिलाकर नांदगांव रियासत की स्थापना हुई।

ये बैरागी राजा बहुत ही प्रगतिशील थे। उन्होंने जनता की भलाई के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। इन बैरागी राजाओं ने वर्ष 1882 में राजनांदगांव में एक अत्याधुनिक विशाल कपड़े का कारखाना लगाया।

इससे पहले वर्ष 1875 में उन्होंने रायपुर में महंत घासीदास के नाम से एक संग्रहालय भी स्थापित किया, जो आज भी भारत के 10 प्राचीनतम संग्रहालयों में से एक है। छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के राजकुमारों की शिक्षा के लिए रायपुर में लगभग 80 एकड़ जमीन में राजकुमार कॉलेज के भवन का निर्माण भी राजनांदगांव के बैरागी राजाओं ने ही करवाया। हॉकी के खेल को प्रोत्साहन देने के लिए इन राजाओं ने राजनांदगांव में एक हॉकी स्टेडियम का निर्माण करवाया।

राजा सर्वेश्वर दास खुद भी हॉकी के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। राजनांदगांव में आज भी हॉकी का अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम है जहां पर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने भी हॉकी खेली है। देसी रियासतों के भारत में विलय होने पर अधिकतर राजाओं ने रियासत के राजमहल और संपत्तियों को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति बना लिया लेकिन राजनांदगांव के राजाओं ने राज महल को कॉलेज में परिवर्तित करने के लिए सरकार को दान में दे दिया।

छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा कॉलेज आज भी राजनांदगांव में बैरागी राजाओं के राजमहल में चलता है। इस महाविद्यालय का नामकरण भी अंतिम राजा महंत दिग्विजय दास के नाम पर किया गया है। राजनांदगांव पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का विधानसभा क्षेत्र भी है। आज भी राजनांदगांव के अधिकतर शासकीय कार्यालय बैरागी राजाओं द्वारा बनाए गए भवनों में ही चलते हैं । यहां का महंत सर्वेश्वर दास विद्यालय भी राजा सर्वेश्वर दास का बनाया हुआ है।

नागपुर कोलकाता रेलवे लाइन के लिए जमीन उपलब्ध कराने में भी इन बैरागी राजाओं का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और इन्हीं के प्रयासों से नागपुर कोलकाता रेलवे लाइन का निर्माण हो पाया। इन बैरागी रियासतों के शासन में एक महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि बैरागी गादी का मुख्य महंत ही राजा होता था। इन राजाओं द्वारा जनकल्याण के किए गए कार्य दर्शाते हैं कि राजाओं में साधुओं के गुण और व्यवहार हमेशा कायम रहे। इन बैरागी राजाओं द्वारा कुंभ के समय वैष्णव अखाड़ों को भरपूर आर्थिक सहयोग दी जाती रही है।
(लेखक भारत सरकार में वरिष्ठ अधिकारी हैं)