ऐसी ही एक सिद्ध साधिका मां आनंदमयी हुई हैं। मां आनंदमयी आजादी से पूर्व अविभाजित बंगाल से सबसे पहले देहरादून के रायपुर तपोवन क्षेत्र में पहुंचीं जो मां का साधना स्थल है। यहां पर गांधीवादी विचारक जमना लाल बजाज ने उनके लिए आश्रम का निर्माण करवाया था।
मां के देहरादून में जाखन राजपुर रोड, कल्याण वन राजपुर रोड, किशनपुर मसूरी रोड सहित कुल चार आश्रम हैं और उत्तरकाशी में काली मंदिर आश्रम, अल्मोड़ा और कनखल में एक-एक आश्रम हैं। इस तरह मां आनंदमयी के उत्तराखंड में सात आश्रम हैं, जबकि पूरे देश में 21 आश्रम हैं।
कनखल की होकर ही रह गई मां आनंदमयी
जब कई साल पूर्व मां आनंदमयी शिव के ससुराल कनखल गंगा तट पर पहुंचीं और फिर यहीं की होकर कर रह गर्इं। कनखल के गंगा तट पर उन्होंने कई वर्षों तक एकांत चित्त होकर कर तपस्या की। मां सिद्ध साधक होने के साथ-साथ सादगी और मातृत्व का अद्भुत संगम थीं। 1960 में कनखल आने से पूर्व हरिद्वार के खड़खड़ी भूपतवाला क्षेत्र में हिमाचल की सोलन रियासत के भवन में रहींं मां जब देवभूमि हरिद्वार पहुंचीं तो उन्होंने भगवान शिव की ससुराल कनखल को अपनी साधना स्थली के रूप में चुना और दक्षेश्वर महादेव मंदिर परिसर के पास उन्होंने गंगा तट पर अपनी कठोर साधना शुरू की।
विवाहित होने के बावजूद उन्हें कभी घर-गृहस्थी ने आकर्षित नहीं किया। उन्हें कभी सांसारिक मोह माया से कोई लगाव नहीं रहा। उनकी लगन तो केवल परमपिता परमेश्वर की भक्ति में ही लगी रही। गृहस्थी से विरक्त होने के बाद उनकी लगन केवल ईश्वर प्राप्ति ही थी। करुणा, दया और ममत्त्व की प्रतिमूर्ति मां सहज रूप से समाधि में चली जाती थीं। आध्यात्मिक जीवन को अपनाने के बाद सबसे पहली दीक्षा अपने पति को दी। उनके पति ने उनमें दिव्य शक्ति के दर्शन किए थे और वे मां के शिष्य बन गए। मां ने जीवन में कभी संन्यास नहीं लिया।
आस्था का केंद्र है महाज्योति पीठम
देहरादून के किशनपुर आश्रम में 27 अगस्त 1982 को मां आनंदमयी अपना भौतिक शरीर छोड़कर ब्रह्मांड में विलीन हो गई और उन्हें कनखल के आश्रम में महासमाधि दी गई। मां का महासमाधि स्थल मां आनंदमयी महाज्योति पीठम नाम से प्रसिद्ध है, जहां पर मां आनंदमयी की प्रतिमा स्थापित है। 1 मई 1987 को मां का महासमाधि मंदिर बनकर तैयार हुआ जिसका संचालन श्री श्री आनंदमयी संघ करता है।
आनंदमयी आश्रम कनखल की स्थापना 1970 में की गई। श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत गिरधर नारायण पुरी महाराज ने अखाड़े की ओर से आनंदमयी आश्रम के लिए भूमि उपलब्ध कराई थी और आज आनंदमयी आश्रम का विशाल आध्यात्मिक परिसर लोगों की साधना का प्रमुख केंद्र बना हुआ है।
इस परिसर में आदि जगदगुरु शंकराचार्य की प्रतिमा और ध्यान केंद्र, मां आनंदमयी की मां स्वामी मुक्तानंद गिरि महाराज की महासमाधि शांतिनिकेतन,11 कुंडीय अति रुद्र महायज्ञशाला, गायत्री यज्ञशाला, मां आनंदमयी की महासमाधि, उनकी प्रतिमा ,गौशाला, संस्कृत विद्यालय, अतिथि गृह स्थित है।
कनखल के आश्रम में मां आनंदमयी जिस वटवृक्ष के नीचे बैठकर श्रद्धालुओं को दर्शन देती थीं, वहीं पर उनकी महासमाधि बनाई गई है। आश्रम में जो अति रुद्र महायज्ञशाला बनाई गई है, वह हरिद्वार की पहली विशिष्ट यज्ञशाला है जिसमें संत-महात्माओं,आचार्यों, चारों वेदों के ज्ञाता 135 विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा 6 मई से 16 मई 1981 तक 11 दिवसीय अति रूद्र महायज्ञ तथा 4 मई से 14 मई 1984 तक 11 दिवसीय अभिषेकात्मक अतिरूद्र यज्ञ महोत्सव समारोह का आयोजन किया गया था। मां के जन्म स्थल ढाका (अब बांग्लादेश की राजधानी) से लाई गई दिव्य अखंड ज्योति और अखंड अग्नि आनंदमयी आश्रम की गायत्री यज्ञ शाला में 1926 से प्रज्वलित हो रही है।