हिंदू पंचाग के अनुसार मार्गशीर्ष माह की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को जीवन और मृत्यु से जोड़कर देखा जाता है। इस दिन व्रत करने से मृत्यु पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार चंपा नगरी में एक प्रतापी राजा वैखनास रहते थे, मान्यता है कि उन्हें सभी वेदों का ज्ञान था। उनके प्रताप के कारण उनकी जनता बहुत प्रसन्न रहती थी। एक दिन राजा ने सपने में देखा कि उनके पिता नरक में यातनाएं झेल रहे हैं। अपने इस सपने के बारे में उन्होनें अपनी पत्नी को बताया और कहा कि मैं यहां सुख से हूं और मेरे पिता को इतना कष्ट है। इसपर राजा की पत्नी ने उन्हें आश्रम में जाने की सलाह दी। राजा जब आश्रम पहुंचे तो उन्होनें कई तपस्वियों को देखा।
राजा ने अपनी बात वहां मौजूद पर्वत मुनि को बताई और अपनी परेशानी बताते हुए राजा की आंखों से आंसू आने लगे। इसके बाद पर्वत मुनि से सारा सच जाना और राजा को कहा कि तुम एक पुण्य आत्मा हो, जो अपने पिता के लिए इतने परेशान हो, लेकिन परेशान होने की जरुरत नहीं है तुम्हारे पिता अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं। तुम्हारे पिता ने तुम्हारी माता को बहुत यातनाएं दी हैं। इसी पाप के कारण वो नरक भोग रहे हैं। राजा ने मुनि से इस परेशानी का हल पूछा तो मुनि ने कहा कि तुम्हें मोक्षदा एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए और इसे पिता को फल समर्पित करना चाहिए। इससे उनके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। राजा ने इसी विधि का पालन किया और उनके पिता सभी बुरे कर्मों से मुक्त हो गए।
मोक्षदा एकादशी के दिन भी सभी एकादशी की तरह व्रत किया जाता है। मान्यता है कि एकादशी से एक दिन पहले दशमी को सात्विक भोजन करना चाहिए और भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन पूरे दिन का व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साश दामोदर और कृष्ण की पूजा की जाती है। एकदाशी के दिन भगवान विष्णु को फलाहार करवाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चावल खाना शुभ नहीं माना जाता है। व्रत करने वाले लोग सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान करते हैं और धूप, दीप, तुलसी आदि से भगवान की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने से परिवार को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। मोक्षदा एकादशी के व्रत का महत्व धनुर्मास के कारण बढ़ जाता है। दक्षिण भारत में इसका पालन धार्मिक विधि के साथ किया जाता है।


