पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मासिक दुर्गाष्टमी के दिन के लिए मान्यता है कि दुर्गम नाम के क्रूर राक्षस ने अपनी क्रूरता से तीनों लोकों को पर अत्याचार किया हुआ था। उसके आतंक के कारण सभी देवता स्वर्ग छोड़कर कैलाश चले गए थे। दुर्गम राक्षस को वरदान था कि कोई भी देवता उसका वध नहीं कर सकता, सभी देवता ने भगवान शिव से विनती कि वो इस परेशानी का हल निकालें। इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपनी शक्तियों को मिलाकर शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन देवी दुर्गा को जन्म दिया। इसके बाद माता दुर्गा को सबसे शक्तिशाली हथियार दिया गया और राक्षस दुर्गम के साथ युद्ध छेड़ दिया गया। जिसमें माता ने राक्षस का वध कर दिया और इसके बाद से दुर्गाष्टमी की उत्पति हुई।

दुर्गा अष्टमी के दिन माता दुर्गा के हथियारों की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने वाले लोग सुबह स्नान करके देवी दुर्गा का पूजन करते हैं। माता के पूजन में लाल फूल, लाल चंदन, दीया, धूप आदि सामाग्री का प्रयोग किया जाता है। मासिक दुर्गाअष्टमी के दिन माता के पसंद का गुलाबी फूल, केला, नारियल, पान के पत्ते, लौंग, इलायची, सूखे मेवे आदि को प्रसाद के रुप में माता को अर्पित किया जाता है। इसके साथ माता को पंचामृत का भोग लगाया जाता है। ये पंचामृत दही, दूध, शहद, गाय का घी और चीनी का मिश्रण बनाया जाता है। इसके बाद दीपक जलाकर मंत्र का जाप किया जाता है।

सर्व मंगलय मांगल्ये, शिवे सर्वाध साधिके,
शिरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमस्तुते।।

माता दुर्गा का व्रत कई लोग बिना अन्न जल के करते हैं और कुछ लोग इस दिन फलसेवन करते हैं। माता के व्रत के लिए किसी प्रकार की विशेष विधि नहीं होती है। माना जाता है कि माता अपने भक्तों को परेशानी में नहीं देख सकती है, इसलिए जिसकी जैसी श्रद्धा होती है वो व्रत करता है। इसके साथ ही कई जगहों पर माना जाता है कि व्रत करने वाले को आराम और विलासिता से दूर रहना चाहिए।