March 2020 Vrat/ Festival: 06 मार्च, शुक्रवार (आमलकी एकादशी): फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी के तौर पर जाना जाता है। यह एकादशी महाशिवरात्रि और होली के मध्य आती है। आमलकी एकादशी के दिन आंवला के पेड़ के नीचे विष्णु जी की पूजा का विधआन है। मान्यता है कि एकादशी व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में इस व्रत का काफई महत्व माना जाता है।
07 मार्च, शनिवार (शनि प्रदोष व्रत): हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत आता है। इस व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है। जब ये व्रत शनिवार के दिन आता है तब इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। शनि प्रदोष व्रत शनि के दोष से मुक्ति पाने के लिए भी उत्तम माना गया है।
09 मार्च, सोमवार (छोटी होली, होलिका दहन): फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के समय लोग होलिका की आग में आहुति देते हैं। जिसमें भुट्टे, नारियल, गेहूं, कच्चे आम, उड़द, मूंग, चावल का उपयोग किया जाता है।
10 मार्च, मंगलवार (होली): रंगों का उत्सव होली इस बार 10 मार्च को मनाया जायेगा। इस दिन लोग आपसी गिले शिकवे मिटाकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं। हिंदी नव वर्ष के आने की खुशी में ये पर्व मनाया जाता है।
12 मार्च, गुरुवार (संकष्टी चतुर्थी): कष्टों को हरने वाली चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी कही जाती है। इस दिन प्रथम पूज्य देवता गणेश जी की पूजा की जाती है। पूर्णिमा के बाद पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के तौर पर मनाया जाता है।
13 मार्च, शुक्रवार (रंग पंचमी): रंगों का यह उत्सव चैत्र कृष्ण की प्रतिपदा से लेकर पंचमी तक चलता है। पांच दिनों तक चलने के कारण इसे रंग पंचमी कहा जाता है। कोंकण क्षेत्र में यह त्योहार विशेष तौर पर मनाया जाता है। वहीं महाराष्ट्र में तो होली को ही रंग पंचमी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन गुलाल हवा में उड़ाने से देवता आकर्षित होते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इससे ब्रह्मांड में पॉजिटिव एनर्जी का संयोग बनता है। इसलिए इस पर्व को देवताओं के रंगों से भरे आशीर्वाद के रूप में भी देखा जाता है।
16 मार्च, सोमवार (बसोड़ा, शीतला अष्टमी): होली के बाद जो अष्टमी पड़ती है उस दिन पर शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है। शीतला अष्टमी को बसोड़ा के अन्य नाम से भी जाना जाता है। उत्तर भारत में शीतला माता को रोगों को दूर करने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। साथ ही एक दिन पहले का बना हुआ बासी भोजन शीतला माता को भोग के तौर पर अर्पित किया जाता है। शीतला माता का आशीर्वाद पाने के लिए सप्तमी और अष्टमी दोनों दिन व्रत रखा जाता है।
19 मार्च, गुरुवार (पापमोचनी एकादशी): चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने और इसका विधिपूर्वक पालन करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। पापमोचिनी एकादशी व्रत के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था। कहते हैं कि पापमोचिनी एकादशी व्रत करने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।
21 मार्च, शनिवार (प्रदोष व्रत): जब शनिवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ता है तो ये शनि प्रदोष व्रत के तौर पर मनाया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत से शनि दोष से छुटकारा मिलता है।
25 मार्च, बुधवार (चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा): चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है। नौ स्वरूपों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कत्यायिनी, कालरात्रि, महाहागौरी और सिद्धिदात्री हैं। इसके अलावा भारत में इस पर्व को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे ‘संवत्सर पड़वो’ नाम से मनाया जाता है। कर्नाटक में ‘युगाड़ी’ नाम से जाना जाता है। आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में ‘गुड़ी पड़वा’ को ‘उगाड़ी’ नाम से मनाते हैं।