Mahabharat: अपनी माता कुंती की एक भूल के कारण धर्मराज युधिष्ठिर ने समस्त नारी जाति को एक श्राप दे दिया था। वो श्राप ये था कि महिलाएं कभी कोई बात अधिक समय तक गुप्त नहीं रख पायेंगी। इस श्राप से जुड़ा प्रसंग महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखी गई महाभारत में मिलता है। महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन द्वारा अंगराज कर्ण का वध कर दिया गया तब पाण्डवों की माता कुन्ती कर्ण की मृत्यु का विलाप करने पहुंची। माता को कर्ण के लिए आंसू बहाते देख युधिष्ठिर ने कुन्ती से प्रश्न किया कि आप हमारे शत्रु की मृत्यु पर विलाप क्यों कर रही हैं?
तब कुन्ती ने अपने अंदर लंबे समय तक छिपाये गये राज को सबके सामने उजागर कर दिया और कहा कि ये तुम्हारे शत्रु नहीं बल्कि ज्येष्ठ भ्राता हैं और उन्हें कर्ण के जन्म की पूरी कहानी सुनाई। जिसे सुनकर युधिष्ठिर अत्यंत दुखी हुए और माता कुन्ती से कहा कि आपने इतनी बड़ी बात छिपाकर हमें अपने ज्येष्ठ भ्राता का हत्यारा बना दिया। जिस पर युधिष्ठिर ने क्रोध में आकर समस्त नारी जाति को श्राप देते हुए कहा- मैं आज समस्त नारी जाति को श्राप देता हूं कि वे अब चाहकर भी कोई बात अपने ह्रदय में छिपाकर नहीं रख पायेंगी। जनश्रुति है कि धर्मराज युधिष्ठिर के इसी श्राप के कारण स्त्रियां अपने भीतर कोई भी बात छिपा नहीं सकतीं।
सूर्य पुत्र कर्ण के जन्म की कहानी: कुंती ने अपनी तपस्या से ऋषि दुर्वासा को प्रसन्न कर लिया था। जिस पर प्रसन्न होकर दुर्वासा ने कुंती को एक मंत्र तथा वरदान दिया कि तुम इस मन्त्र द्वारा जिस-जिस देवता का आवाहन करोगी, उसी-उसी के अनुग्रह से तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। राजकुमारी कुंती ने इस मंत्र की परीक्षा लेनी चाही और सबसे पहले उन्होंने सूर्य देवता का आवाहन किया; जिसके फलस्वरूप कुंती को कवच-कुंडल धारी सूर्य पुत्र कर्ण प्राप्त हुआ। परन्तु लोक-लाज के डर से कुंती ने उसको नदी में प्रवाहित कर दिया। लेकिन कुंती को अपने इस पुत्र का मोह हमेशा लगा रहा। तत्पश्चात कुन्ती का विवाह पाण्डु से हुआ, और उनको उसी मंत्र के आवाहन से युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन तथा पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री को नकुल व सहदेव हुये। परंतु कुंती ने कभी भी किसी को कर्ण के बारे में नहीं बताया।

