अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 31 जनवरी को माघी पूर्णिमा है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का महत्व होता है और उसके बाद श्रद्धालु पूजा-पाठ, यज्ञ आदि करते हैं। माना जाता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान और दान करने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है। इसी के साथ कई लोग इस दिन व्रत करते हैं। पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। पूर्णिमा के दिन व्रत के साथ कथा का पाठ किया जाता है। पूर्णिमा व्रत कथा के अनुसार एक बार योगी नारद जी ने भ्रमण करते हुए मृत्युलोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते हुए देखे। नारद जी का हृदय द्रवित हो गया वो वीणा बजाते हुए अपने आराध्य श्रीहरि का पूजन करने लगे और स्तुति बोलते हुए क्षीर सागर पहुंच गए और कहा हे नाथ, आप कृपा कर धरती के लोगों का दुख हरने का कोई उपाय बताएं। श्रीहरि ने कहा कि तुमने विश्वकल्याण के लिए एक सुंदर प्रश्न पूछा है। श्री हरि ने कहा कि जो माघ माह की पूर्णिमा के दिन व्रत करेगा और कथा का पाठ करने से विश्व के हर श्रद्धालु का दुख खत्म हो पाएगा।

माघ माह पूर्णिमा के दिन स्नान करने के बाद पूजन से व्यक्ति के हर दुख को खत्म किया जा सकता है। इसी के साथ सत्यनारायण कथा का पाठ किया जाता है। कथा के अनुसार एक नगर में दो व्यक्ति रहते थे। एक का नाम लपसी था और दूसरे का नाम तपसी था। तपसी भगवान की तपस्या में लीन रहता था, लेकिन लपसी सवा सेर की लस्सी बनाकर भगवान को भोग लगाता और लोटा हिलाकर स्वयं उसे पी लेता था। एक दिन दोनों स्वयं को एक-दूसरे से बड़ा मानने के लिए लड़ने लगे। लपसी बोला कि मैं बड़ा हूं और तपसी अपने को बड़ा बता रहा था। तभी नारद मुनि वहां आए और कहने लगे कि तुम दोनों क्यों लड़ रहे हैं। तब दोनों ने नारद को ये बात बताई। नारद मुनि ने कहा कि मैं इस बात का फैसला कर सकता हूं।

तपसी अगले दिन स्नान करने के बाद वापिस आ रहा था तब नारद जी ने उसके सामने सवा करोड़ की अंगूठी फेंक दी। तपसी ने वह अंगूठी अपने नीचे दबा ली और तपस्या के लिए बैठ गया। तभी नारद जी आते हैं और दोनों को बैठाते हैं और तपसी से उसका पैर उठाने के लिए कहते हैं औऱ वहां से अंगूठी निकलती है। नारद जी ने उसे कहते हैं कि तुमने अंगूठी चुराई है इस कारण से तुम्हारी तपस्या भंग हो गई है। इसी कारण से लपसी बड़ा हुआ। सभी बातें सुनने के बाद तपसी ने नारद से कहा कि मेरी तपस्या का फल मुझे कैसे मिलेगा। तब नारद ने उसे कहा कि जब पवित्र माघ माह की पूर्णिमा आएगी तब जो तेरी कहानी सुनेगा और दूसरों को सुनाएगा। इससे ही तुझे तपस्या का फल मिलेगा।

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