श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मासों में अधिक मास मुझे अत्यधिक प्रिय है। जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने पुरुषोत्तम मास का नाम प्रदान किया। यह मास मलमास भी कहलाया जाता है।
ज्योतिष गणना के अनुसार अधिक मास हर तीन साल बाद आता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु छह महीने के लिए क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं और चराचर जगत के संचालन की बागडोर देवों के देव महादेव महादेव के सुपुर्द कर देते हैं। सृष्टि का संचालन देवशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक भोले भंडारी करते हैं।
श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत रवींद्र पुरी महाराज कहते हैं कि श्रावण मास में भगवान शिव अपने ससुराल कनखल में वास करते हैं। उन्होंने अपनी अर्धांगिनी सती के आत्मदाह के बाद कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर क्षेत्र में हुए भीषण संहार के बाद अपने ससुर राजा दक्ष को नवजीवन प्रदान किया। उन्हें और अपनी सास को वचन दिया था कि वे सावन मास में कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में वास करेंगे।
अपना वचन निभाने के लिए सदियों से भगवान शिव कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में प्रवास करते हैं। सावन में कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में जो भगवान शिव का जलाभिषेक करता है उसे भगवान शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। श्रावण मास में जब अधिक मास यानी पुरुषोत्तम मास पड़ता है तो उसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि भगवान शिव हमेशा भगवान विष्णु का और भगवान विष्णु हमेशा शिव का जप करते हैं।
दोनों का यह आपसी सद्भाव-भक्ति भाव श्रावण मास में कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में आध्यात्मिक दिव्य दृष्टि रखने वाले लोगों को दिखाई देता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु श्रावण मास के अधिक मास में भगवान शिव की आराधना करने के लिए क्षीर सागर से कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में आते हैं। दोनों का यह मिलन अद्भुत होता है।
श्रावण मास में पड़ने वाले अधिक मास में जो श्रद्धालु कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं उन्हें भगवान शिव की कृपा के साथ भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। क्योंकि सावन मास के अधिक मास में कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों का साक्षात दर्शन देखने को मिलता है। यह अद्भुत संयोग श्रावण के अधिक मास में ही होता है। कहते हैं कि श्रावण के अधिक मास के इस विलक्षण क्षण की प्रतीक्षा सभी देवी-देवता,ऋषि मुनि वर्षों तक करते हैं।
अधिक मास का आध्यात्मिक महत्त्व
हिंदू पंचांग की गणना के अनुसार अधिकमास हर तीन साल बाद आता है। अधिक मास में पूजा पाठ, चिंतन- मनन, ध्यान करने से मनुष्य के जीवन में पंच महाभूतों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश का संतुलन बनता है। जिससे मनुष्य को आध्यात्मिक के साथ भौतिक सुख और उन्नति प्राप्त होती है क्योंकि मनुष्य के शरीर में यह पंचमहाभूत प्रतिनिधित्व करते हैं।
मनुष्य का शरीर इन पंच महाभूतों से निर्मित हुआ है और मृत्यु के बाद मनुष्य की पार्थिव देह इन्हीं पंचमहाभूतों में विलीन हो जाती है। मूलरूप से ये सब पंचमहाभूत मूल तत्त्व हमारे शरीर में बराबर मात्रा में रहने चाहिए। ज्योतिष शास्त्र में मान्यता है कि जिनकी जन्म कुंडली में किसी भी प्रकार का दोष हो वह अधिक मास में धार्मिक कृत्य करने से दूर हो जाता है। इस साल अधिक मास श्रावण मास 18 जुलाई से शुरू हुआ और 16 अगस्त को समाप्त होगा।
अधिक मास मांगलिक कार्य करने के लिए वर्जित माना जाता है परंतु भगवान विष्णु की पूजा और श्रद्धा भक्ति करने के लिए अधिकमास बहुत ही पवित्र माना गया है, जो श्रद्धालु अधिकमास में विष्णु की भक्ति करता है उसे जीवनपर्यंत कभी धन की कमी नहीं होती है, मृत्यु के बाद उसे विष्णु लोक में उच्च स्थान प्राप्त होता है।
हर तीन वर्ष में क्यों आता है अधिक मास
सूर्य व चंद्र गणना के बीच के अंतर का संतुलन बनाने के लिए हर तीन वर्ष में अधिकमास आता है। ज्योतिष गणना के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन साल में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है।
इसी अंतर के भेद को मिटाने के लिए के हर तीन साल में अतिरिक्त मास आता है, जिसे अधिकमास, मल मास अथवा पुरुषोत्तम मास कहते हैं। अधिकमास में विष्णु की पूजा, मंत्र, यज्ञ- हवन, श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, गीता पाठ, नृसिंह भगवान की कथा का श्रवण करने से पापों का नाश होता है और सभी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। अधिक मास में गायों की सेवा करने का विशेष महत्त्व है पितरों की आत्मा की शांति के लिए अधिकमास में तीर्थ श्राद्ध, दर्श श्राद्ध, एवं नित्य श्राद्ध करना चाहिए।