रामायण की कथा के कई सारे संस्करण हमें देखने को मिलते हैं लेकिन उस काल का सही वर्णन वाल्मीकि रामायण में ही मिलता है। वाल्मीकि रामायण के बाद कई ऋषियों ने भगवान राम और सीता के जीवन पर कहानी लिखने के बारे में सोचा। इसी के कारण कई सारे ग्रंथों का जन्म हुआ लेकिन उन में वाल्मीकि रामायण के प्रसंगों को कहानी के रुप में बदल दिया जाता है। इन सभी ग्रंथों में एक कहानी अवश्य होती है जिसमें राम-सीता के मिलन से लेकर उनके वनवास और रावण का वध शामिल होता है। मूल कहानी के साथ कई ऐसे प्रसंग भी होते हैं जिनका प्रमाण किसी अन्य स्थान पर नहीं होता है।

रामायण से जुड़ी एक कथा के अनुसार माना जाता है कि सीता ने दो नहीं एक पुत्र को जन्म दिया था। माता सीता ने अयोध्या नगरी को छोड़ने के बाद महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में शरण ली थी। वहीं पर उन्होनें पुत्र लव को जन्म दिया। एक समय माता जंगल में गईं तो पीछे से महर्षि को लगा कि लव को कोई जंगली जानवर ले गया है और इस बात को माता सीता सहन नहीं कर पाएंगी। वाल्मीकि ने अपनी सिद्धि से कुशा घास से एक शिशु का निर्माण किया और उसमें अपनी सारी शक्ति का इस्तेमाल करके प्राणों का संचार कर दिया।

माता सीता जंगल से जब आश्रम लौटीं तो महर्षि चकित रह गए क्योंकि लव माता सीता के साथ था। वहां माता सीता ने लव जैसा पुत्र देखा तो वह बहुत ही प्रसन्न हुईं। महर्षि ने पूछा तो माता ने बताया कि वो लव को आज अपने साथ ले गईं थी। माता सीता ने उसे अपने पुत्र के रुप में स्वीकार लिया। कुशा से निर्मित होने के कारण उस बालक का नाम कुश रखा गया। इसी के कारण माता के दो पुत्रों की कहानी कही जाती है।