सभी देवताओं में भगवान गणेश प्रथम पूज्यनीय हैं। हर शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश (Lord Ganesha) को पूजा जाता है। मान्यता है कि हर शुभ काम से पहले विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा करने से सभी कार्य बिना किसी विघ्न-बाधा के सफल हो जाते हैं। कथाओं में उल्लेख मिलता है कि भगवान गणेश के की बनावट और उनके गज के चेहरे के चलते कोई उनसे विवाह करने को तैयार नहीं था।
वहीं कुछ जगह इस बात का भी जिक्र है कि गणेश जी ब्रम्हचारी रहना चाहते थे। भगवान गणेश रिद्धि और सिद्धि के दाता हैं, यानी रिद्धि और सिद्धि उनकी पत्नियां हैं। हालांकि, बहुत कम लोगों को पता होगा कि श्री गणेश का विवाह कैसे हुआ था। तो आइए जानते हैं किवदंती के जरिए भगवान गणेश का विवाह कैसे हुआ?
विवाह में क्यों आती थी बाधा: पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने क्रोध में आकर एक बार गणेश जी का एक दांत फरसे से काट दिया था। इसी के बाद गणेश जी एक एकदंत और वक्रतुण्ड नामों से संबोधित किया जाने लगा, लेकिन उनके इसी एक दांत के कारण उनसे कोई भी विवाह करने को तैयार नहीं था। इससे नाराज श्री गणेश अन्य देवताओं के विवाह में बाधा पहुंचाते थे।
भगवान गणेश का विवाह ब्रह्मा जी की पुत्रियां रिद्धि और सिद्धि से हुआ था। बताया जाता है कि एक धर्मात्मज नाम का राजा हुआ करता था, जिसकी कन्या थी तुलसी। तुलसी यौन अवस्था में थी। वो अपने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली। इसी दौरान ध्यान में लीन गणेश जी दिखाई पड़े, चंदन और पीताम्बर से लिपटे हुए गणेश जी को देखकर तुलसी के मन में विवाह का विचार आया।
गणेश जी की तपस्या भंग करके विवाह का प्रस्ताव जब रखा तो नाराज गणेश ने विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया, जिसके बाद तुलसी भी क्रोध में दो विवाह का शाप दिया, जिसके बाद गणेश जी ने कहा तुम्हारा विवाह एक असुर शंखचूर्ण (जालंधर) से होगा। राक्षक की पत्नी होने का श्राप सुनकर तुलसी जी ने गणेश जी से माफी मांगी।
इसके अलावा गणेश जी के विवाह के पीछे भी एक और रोचक कथा है। कहा जाता है कि जब श्री गणेश अन्य देवताओं की शादी में विघ्न डालने लगे तो ब्रह्मा जी ने देवताओं की समस्या का समाधान निकालने के लिए अपनी दोनों पुत्रियों रिद्धि और सिद्धि को उनके पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। जब भी गणेश जी किसी देवता की शादी में विघ्न पहुंचाने वाले होते तो उसी समय रिद्धि और सिद्धि उनके कोई प्रश्न पूछ लेती थीं।
वहीं एक कथा के अनुसार गणेश जी ने रिद्धि और सिद्धि को एक राक्षस से बचाया था जिसके बाद, इनके पिता को जब यह ज्ञात हुआ तो भगवान शिव के बाद अपनी दोनों बेटियों का रिश्ता लेकर कैलाश पहुंच गए थे।