गणेश जी भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र हैं। कहा जाता कि गणेश सदैव अपने भक्तों की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा गया है। यानी कि गणेश जी अपने भक्तों के सभी विघ्न हर लेते हैं। मालूम हो कि गणेश जी के अनंत नाम और अनगिनत स्वरूप बताए गए हैं। हालांकि इसमें से गणपति के आठ स्वरूप को अत्यधिक प्राथमिकता दी गई है। गणपति के इन आठ स्वरूपों के बारे में कहा जाता है कि ये किसी व्यक्ति की हर तरह की कमजोरी को दूर कर सकते हैं। इन कमजोरियों के दूर हो जाने के बाद व्यक्ति अपने जीवन में खूब प्रगति और उन्नति करता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति के अंदर से ये आठ कमजोरियां दूर हो जाती हैं, वह ईश्वर को भी हासिल कर सकता है।

मुद्गल पुराण में भगवान गणेश के सभी स्वरूपों के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें गणेश के आठ स्वरूपों को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। मुद्गल पुराण में कहा गया है कि गणपति के इन आठ स्वरूपों का अवतार अलग-अलग असुरों का नाश करने के लिए हुआ था। साथ ही इन सभी आठ स्वरूपों की उपासना करने से मनुष्य को अलग-अलग तरह की कमजोरियों पर विजय मिलने की मान्यता है। ऐसा होने से व्यक्ति के मन की आठ विकृत्तियां दूर होती हैं। गणेश जी के आठ स्वरूप निम्नलिखित प्रकार से हैं और इनकी इस प्रकार से महिमा बताई गई है।

1. वक्रतुंड: इनकी पूजा से अहंकार का नाश होता है।

2. एकदंत: मद(घमंड) की समाप्ति हो जाती है।

3. महोदर: इससे मोह भंग होता है।

4.गजानन: व्यक्ति के लोभ की समाप्ति होती है।

5. लंबोदर: व्यक्ति का क्रोध समाप्त होता है।

6. विकट: इस स्वरूप की पूजा से काम भाव नियंत्रित है।

7. विघ्नराज: ममता के जाल से व्यक्ति बाहर निकलता है।

8. धूम्रवर्ण: इस स्वरूप से अहंकार का भाव समाप्त होता है।