नरपतदान चारण
दीपोत्सव का सीधा सा मायना है। ज्ञान के उजाले से अंतस में छाए अज्ञान के अंधकार को मिटाना। आलोकित होने वाली दीपकों की कतारें जो हमें निरंतर ज्ञान के प्रकाश का संदेश देती हैं, उसे हमें ग्रहण करना है। कतारबद्घ दीपकों से यह प्रेरणा लें कि हम उससे सहयोग का सबक सीखकर उसकी पृष्ठभूमि में छिपे हुए दर्शन को व्यावहारिक रूप में ढालेंगे और संसार को उससे आलोकित करेंगे, जिससे कि हम अपना जीवन किसी लक्ष्य के लिए समर्पित कर सकें।
सामान्यतया काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या आदि अवगुण अपनी सीमाओं को पार करके अंधकार का आवरण धारण करके हमारे हृदय पर छा जाते है और हमारी आत्मा के प्रकाश को इस तरह से रोक देते हंै जैसे कि सूर्य की रोशनी को बादल रोक लेता है। इससे मुक्ति पाने का उपाय ही है-लौ। हमें लौ के उजाले को अपने आत्मा के उजाले से इस तरह से जोड़कर रखना होगा ताकि प्रकाश का पुंज ओर तीव्र होकर भ्रम के कोहरे को पार कर हमारे भीतर को प्रदीप्त कर सके। जब तक कि आपके अंदर की भावना संकुचित है तब तक आपका त्योहार मनाना व्यर्थ ही हैे। इसी तरह इस त्योहार का एक और गुण रहस्य पटाखों के फूटने के भाव में दबा है।
जीवन में हम कई बार पटाखों के समान होते हैं। अपने भीतर हताशा, अवसाद, क्रोध, ईर्ष्या आदि के साथ फूट पड़ने की सीमा तक पहुंचे हुए। पटाखों को फोड़ने की क्रिया लोगों की भावनाओं को अभिव्यक्ति देने का एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास का रूप है। विस्फोट का मतलब हुआ अपनी दबी हुई भावनाओं से मुक्त होना। हृदय से खाली हो जाना। अब यदि आपके परिवार का एक भी सदस्य अंधकार में है तो आप खुश नहीं रह सकते। सोना चांदी की पूजा तो करते हंै मगर ये केवल बाहरी प्रयोग मात्र है। बुद्धिमत्ता और उच्च नैतिक आचरण ही वास्तविक धन है।
हमारा चरित्र, शांत स्वभाव और आत्म विश्वास असली पूंजी है। इसलिए सदैव दूसरों के प्रति उदारता का भाव मन में रखें। असली दीपावली यही है कि अपने हृदय में द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार और मोह को त्यागकर बेसहारों का सहारा बनें। अनाथों के घर को रोशन करें। कुछ मिठाई, अनाज,कुछ वस्त्र बांटकर। उनके साथ खुशियां साझा करें, क्योंकि किसी जरूरतमंद की सेवा ही असली पूजा है।
हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि नर सेवा ही नारायण सेवा है। आपके भीतर ऐसा प्रकाश छुपा है जिसे बाहर लाकर आप गुमनाम जीवन जी रहे लोगों के जीवन को रोशन कर सकते है। बस इस बात का दिया ध्यान और मान रखें और दीपावली दीपक वाली के साथ ही दिलवाली मनाएं, जिसकी यादें हमारे जीवन को हमेशा महकाएं। त्योहार मनाना चाहिए जीवन जीने के लिए और कल्याण के लिए। खुशियां बांटने के लिए और मानवीयता को कायम करने के लिए।