नरपतदान चारण

मान सम्मान, प्रतिष्ठा, जुड़ाव और प्रेम पाना चाहता लेकिन हर कोई ऐसा नहीं कर पाता इसलिए हरेक जीवन पथ पर आगे नहीं बढ़ पाता क्योंकि, इसके लिए उसे कुशल लोक व्यवहार में महारत होना होगा तभी वह आगे बढ़ सकता है। ईमान, मृदु वाणी, सत्य वचन, ईर्ष्या और द्वेष रहित आचरण, लोभ लालच से मुक्त इत्यादि व्यवहार कुशलता के प्रमुख रूप है। व्यावहारिक कुशलता ही सामाजिकता का आधार स्तंभ है। अकुशल व्यवहारिकता असामाजिक होने का सूचक है। जब व्यवहार कौशल का ज्ञान का मानव के व्यावहारिक जीवन में उतरने लगता है, तब उसके आचरण में आया बदलाव, उसकी उज्ज्वल छवि और उसकी मधुर वाणी दूसरों को स्वत: ही प्रभावित कर लेती है।

इस संदर्भ में एक बात महत्त्वपूर्ण यह है कि इस व्यावहारिक कुशलता की प्राप्ति के लिए दिन-प्रतिदिन उत्तरोत्तर नैतिक नियमाचार का पालन करना आवश्यक है। इस तरह धीरे-धीरे प्रयास करते हुए जब हम जीवनपथ पर अग्रसर होते हैं, तब स्वत: ही हमारे अंदर विलक्षण कुशल व्यवहारिक परिवर्तन होते नजर आते हैं। और जब व्यावहारिक कौशल प्रयोग में आता है, तब आत्मिक सौंदर्य की खुशबू बिखेरने लगती है।

इसी से लगता है कि जीवन और व्यावहारिक कुशलता का घनिष्ठ संबंध है। सचमुच व्यवहार कुशलता ही वह गहना है जो हमारे जीवन को सुंदरतम बनाए रखता है। व्यवहार कुशलता से आप समाज में अधिक स्वीकार किय्ए जाते हैं, अधिक सहयोग और सम्मान के अधिकारी बनते हैं और आपकी कार्यशैली अधिक सुखद परिणाम देने वाली सिद्ध होती है।

अगर आप व्यवहार कुशल हैं, तो बेशक समझेंगे कि जरा सी अव्यावहारिकता से लोगों के मन, हृदय और अहम को चोट लग जाती है, जिसका सीधा असर आपसे जुड़े पूरे समाज पर पड़ता है। व्यवहार के माध्यम से व्यक्ति न केवल अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है, बल्कि अपने व्यक्तित्व को भी प्रस्तुत करता है। व्यवहार को देखकर, जानकार किसी के व्यक्तित्व का भी आकलन किया जा सकता है।

अत: यह बहुत जरूरी हो जाता है कि हमें परिस्थितियों के अनुसार सही ढंग से व्यवहार करने की कला ज्ञात हो, ऐसा होने पर ही हम व्यवहार कुशल बन पाएंगे और व्यावहारिक जीवन के प्रति अपने कर्तव्यों को सही से निभा सकेंगे। व्यवहार करने में समझदारी और विनम्रता की भी आवश्यकता होती है। बिना नैतिकता और समझदारी के हम अपने व्यवहार को सही अभिव्यक्ति नहीं दे पाते हैं और विनम्रता के अभाव में व्यवहार की खूबसूरती उभर नहीं पाती है।

अच्छे व्यवहार के माध्यम से व्यक्ति दूसरों को क्षण भर में प्रभावित कर सकता है और अपरिचित व अजनबियों को भी अपना सहयोगी बना सकता है। चूंकि हम जो भी कार्य करते हैं, उसमें हमारा व्यवहार झलकता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हमें यह समझ हो कि हमें किन परिस्थितियों में किस तरह का व्यवहार करना चाहिए। यही व्यवहार कुशलता पूर्वक। हमें स्वयं से प्रश्न करना चाहिए कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे व्यवहार में कुशलता यानी ईमान, सत्य व कर्तव्यशीलता की कमी है? केवल दिखावे के लिए किए गए व्यवहार अपनी उपयोगिता गंवा देते हैं और इससे किसी को लाभ नहीं मिलता।

आने वाली परिस्थितियों में हमें कैसा व्यवहार करना है यह निर्णय हमें ही लेना होता है। याद रखें कि व्यवहार वही शोभा देता है, जो कुशल हो यानी जिसमें विनम्रता हो, समझदारी हो और वह शुभभावना से अभिप्रेरित हो। निष्कर्षत: व्यवहार कुशलता में वह शक्ति निहित है, जिसके माध्यम से व्यक्ति समाज और लोगों के साथ प्रेम से रह सकता है, जीवन का आनंद ले सकता है।