Kushagrahani Amavasya 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्र मास मास में पड़ने वाली अमावस्या का विशेष महत्व है। इसे पिठोरी अमावस्या, भादौ अमावस्या, कुशोत्पाटिनी अमावस्या या कुशग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन स्नान- दान, पितरों का श्राद्ध करने के साथ-साथ साल भर किए जाने वाले धार्मिक कार्यों के लिए कुश एकत्र की जाती है। हिंदू धर्म में कुश का विशेष महत्व है। इसका इस्तेमाल शादी-विवाह जैसे मांगलिक, शुभ कार्यों से लेकर पितरों का श्राद्ध करने में किया जाता है। जानिए कुशोत्पाटिनी अमावस्या पर कैसे तोड़े कुश। इसके साथ ही जानिए महत्व और मंत्र।
कुश का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, कुश का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु और अग्रभाग शिव का कहा जाता है। इसी के कारण तुलसी की तरह की कुश भी कभी बासी नहीं होती है। भाद्रपद की अमावस्या के दिन साल भर पूजा, अनुष्ठान से लेकर श्राद्ध करने के लिए कुश एकत्र कर ली जाती है। इस दिन कुश तोड़कर लाने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। यह काफी पवित्र मानी जाती है।
कैसे हुई थी कुश की उत्पत्ति?
मत्स्य पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए वराह अवतार लिया था और हिरण्याक्ष का वध किया था। इसके साथ ही उन्होंने प्राणियों को समुद्र से निकालकर पृथ्वी में रखा था। उस समय जब भगवान वराह ने अपने शरीर को झटका था। ऐसे में उनके शरीर के कुछ रोम पृथ्वी पर गिर गए थे और इसी रोम से कुश की उत्पत्ति हुई थी।
कुश तोड़ने के नियम
कुश तोड़ते समय कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। अमावस्या तिथि को स्नान आदि करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद किसी साफ सुथरी जगह से उत्तर या फिर पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश को तोड़ना चाहिए।
अपने दाएं हाथ की इस्तेमाल करके हुए धीरे-धीरे संपूर्ण कुश तोड़े। इसके साथ ही इस मंत्र को बोले-
विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।
इस बात का ध्यान रखें कि कुश की पत्तियां पूरी होनी चाहिए, आगे का भाग टूटा नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही इसे किसी लोहे या फिर अन्य शस्त्र न तोड़े। बल्कि हाथों से तोड़ना चाहिए।
कुश तोड़ने के बाद अंत में ‘हुं फ़ट्’ कहें।
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