हिंदू धर्म में अपने से बड़े और बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेने की परंपरा मानी जाती है। माना जाता है कि किसी काम को शुरु करने से पहले या घर से निकलने से पहले बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है और काम शुरु किया जाता है। साथ ही अपने बड़ों को आदर देने और सम्मानित करने के लिए चरण स्पर्श करने की परंपरा है। पैर छूना अध्यात्म की दृष्टि से उत्तम तो है साथ ही वैज्ञानिक भी इसे सही मानते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चरण स्पर्श करने से व्यक्ति का अहंकार समाप्त हो जाता है और उसके दिल में विनम्रता उत्पन्न होती है। पैर छूने से शरीर में ऊर्जा उत्पन्न होती है और इस ऊर्जा से शरीर का नकारात्मक भाव खत्म होने लगता है।

सनातन धर्म की मान्यता है कि किसी बुजुर्ग के पैर छूने का अर्थ होता है कि व्यक्ति के रुप में मौजूद आत्मा के पैर छूना। माना जाता है कि हर किसी के अंदर आत्मा के रुप में परमात्मा मौजूद होते हैं। इसी के साथ शास्त्रों में एक हाथ से पैर छूना गलत माना गया है। शास्त्रों के अनुसार तीन तरह के चरण स्पर्श होते हैं जिसमें घुटनों के बल, कमर से झुककर और लेट कर जिसे साष्टांग प्रणाम कहा जाता है। चरण स्पर्श को लेकर एक कथा भी मानी जाती है जिसके अनुसार ऋषि मार्कण्डेय की आयु कम थी। इस बात की जानकारी उनके पिता को हुई तो उन्होनें अपने पुत्र को जनेऊ धारण करवाया और चरण स्पर्श की दीक्षा दी और कहा कि कोई भी व्यक्ति दिखे तो उसके चरण स्पर्श करना।

बालक सभी के चरण छूता था, इसी तरह एक बार उन्होनें सप्तऋषियों के चरण स्पर्श किए और उन्होनें मार्कण्डेय को दीर्घायु का वरदान दिया। जब उन्हें पता लगा कि बालक की कम आयु लिखी है तो वो उसे ब्रह्मा जी के पास ले गए और उन्होनें भी बालक को लंबी आयु का वरदान दिया। इसके बाद सप्तऋषियों ने बताया कि इसकी कम आयु लिखी है यदि इसकी मृत्यु पहले हो जाती है तो हम लोगों का वरदान झूठा हो जाएगा। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि ये बालक अब लंबी उम्र व्यतीत करेगा। कुछ समय के बाद यमराज बालक मार्कण्डेय के प्राण लेने आए तो भगवान शिव ने उन्हें वापस भेज दिया और उसके बाद मार्कण्डेय तप और यज्ञ से कई वर्षों तक जीवित रहे और ऋषि मार्कण्डेय बने।