हिंदू धर्म में होने वाले विवाह में कई रस्में निभाई जाती हैं। इन्हीं में से एक कन्यादान रस्म भी है। हिंदू धर्म में हर एक पिता को कन्यादान रस्म निभाना जरूरी माना जाता है। हिंदुओं में कन्या को धनलक्ष्मी का रूप माना गया है। कन्यादान के तहत माता-पिता अपनी धनलक्ष्मी रूपी संतान को वर के हाथों सौंपते हैं। वर के ऊपर इस बात की जिम्मेदारी होती है कि वह उनकी संतान को सुखी और सम्पन्न रखेगा। कन्यादान के तहत पिता पुत्री के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को वर को सौंप देता है। हालांकि इससे पिता पुत्री का रिश्ता समाप्त नहीं होता। बल्कि इस रिश्ते में व्यापकता आ जाती है। कन्यादान में वर पिता को इस बात का वचन देता है कि वह उनकी पुत्री का हमेशा ख्याल रखेगा और उस पर किसी भी तरह की आंच नहीं आने देगा।
कन्यादान को लेकर यह मान्यता है कि इससे माता-पिता के घर में सौभाग्य का आगमन होता है। बेटी का कन्यादान करने से उस परिवार का दुर्भाग्य दूर हो जाता है। माना जाता है कि इससे परिवार के लोगों को अपने जीवन में काफी सफलताएं हासिल होती हैं। इसके उलट जिस परिवार में बेटी का कन्यादान नहीं किया जाता, वहां पर कई तरह की परेशानियों के आने की बात कही गई है। माना जाता है कि सही समय पर बेटी का कन्यादान नहीं करने से पिता सहित परिवार के अन्य लोगों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
उत्तर भारत में कन्यादान के तहत वधू की हथेली को एक घड़े के ऊपर रखा जाता है। इसके बाद वर-वधू के हाथ के ऊपर अपना हाथ रखता है और उसके ऊपर फूल, पान के पत्ते, गंगा जल इत्यादि रखकर मन्त्रोचार किया जाता है। अब एक पवित्र वस्त्र से वर-वधू के हाथ को बांधकर पुष्प वर्षा की जाती है। पुष्प वर्षा का यह दृश्य बेहद ही आकर्षक होता है। इसके बाद विवाह की अन्य रस्मों को निभाया जाता है।


