हिन्दू परंपरा में सभी देवी-देवताओं के अलग-अलग वाहन बताए गए हैं। साथ ही विभिन्न देवी-देवता अलग-अलग वाहन पर विराजते हैं। आखिर देवी-देवताओं के अलग-अलग वाहन क्यों हैं और इनके वाहन पशु-पक्षी के होनी की मान्यता क्या है? साथ ही देवी-देवताओं के वाहन के साथ उनकी पूजा करने से क्या लाभ है? इसके अलावा वाहन पर सवार देवी-देवताओं की पूजा-उपासना कैसे करनी चाहिए। क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है? साथ ही आप जानते हैं कि देवी-देवताओं के वाहन पशु-पक्षी ही क्यों हैं? शास्त्रों के अनुसार इस महात्म्य को जानते हैं।

मान्यता है कि पशु-पक्षी की महत्ता स्थापित हो इसलिए इन्हें देवी-देवताओं के वाहन के रूप में स्वीकार किया गया। पशु-पक्षी भी हमारे जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि हमारी प्रकृति एक-दूसरे पर आश्रित हैं। इसलिए पशु-पक्षियों का भी अपना महत्व है। इसके अलावा प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए जितनी ज्यादा आवश्यकता मनुष्य की है उतनी ही ज्यादा आवश्यकता पशु-पक्षियों की भी है। तभी प्रकृति का भी संतुलन बना हुआ है। इसलिए भी देवी-देवताओं के साथ एक पशु या पक्षी का वाहन स्वरूप होना बताया गया है। साथ ही देवी-देवताओं के वाहन के रूप में जो पशु-पक्षी होते हैं वो एक विशेष प्रकार की मानसिक शक्ति को दर्शाते हैं।

भगवान शिव का वाहन ये दर्शाता है कि उनके पास कौन सी मानसिक शक्ति है। देवी दुर्गा का वाहन भी ये बताता है कि वे किस मानसिक शक्ति से युक्त है। ये किसी न किसी राशि से संबंधित भी होते हैं। यानि जो पशु-पक्षी देवी और देवताओं के वाहन के रूप में हैं वो बताते हैं कि कौन से देवी-देवता किस तरह की मानसिक शक्ति को दर्शाते हैं। किसी व्यक्ति की राशि कौन सी देवी-देवताओं के साथ जुड़ी हुई है, इस बात को भी बताती हैं। कहते हैं कि राशियों से संबंधित उन देवी-देवताओं की यदि पूजा की जाए तो शुभ होता है।

भगवान शिव का वाहन वृषभ है। कहते हैं कि भगवान शिव मानसिक ऊर्जा को नियंत्रित करते हैं। उनका वाहन बैल यह दर्शाता है कि वह वृषभ राशि से जुड़ा हुआ है। साथ ही वृषभ राशि मानसिक ऊर्जा की सबसे बड़ी राशि है। यदि कोई मानसिक ऊर्जा का सर्वाधिक इस्तेमाल करना चाहता है तो उसके लिए शिव की आराधना शुभ मानी गई है। इसी प्रकार से अन्य देवी-देवताओं के साथ ही ऐसा ही है।