Tulsi: हिंदू धर्म में  तुलसी के पौधे को सबसे पवित्र पौधों में से एक माना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, तुलसी के पौधे की विधिवत पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आती है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि तुलसी के पौधे में साक्षात मां लक्ष्मी वास करती हैं। इसके साथ ही विष्णु जी के प्रिय होने के कारण उनकी भी कृपा प्राप्त होती है। वास्तु शास्त्र में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व बताया गया है। औषधीय गुणों से भरपूर होने साथ इसे लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है। इसी के कारण हर एक दिन तुलसी के पौधे की पूजा करना लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि रोजाना तुलसी के पौधे में जल चढ़ाने के साथ शाम के समय घी का दीपक जलाने से धन-संपदा की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही एकादशी और रविवार के दिन तुलसी की पत्तियां तोड़ने की भी मनाही होती है।

माना जाता है कि एकादशी के दिन मां तुलसी व्रत रखती हैं। इसलिए इस दिन जल चढ़ाने के साथ पत्तियां तोड़ने की मनाही होती है। इसके अलावा रविवार के दिन तुलसी की पत्तियां न तोड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। जिसका संबंध मां सीता और राम से हैं। आइए जानते हैं आखिर रविवार के दिन क्यों नहीं तोड़ना चाहिए तुलसी।

इस कारण रविवार के दिन नहीं तोड़ते तुलसी

सीता स्वयंवर के समय जब भगवान राम से धनुष तोड़ दिया था, तो उसके बाद गुरु विश्वामित्र भगवान शालिग्राम की पूजा कर रहे थे, तो उन्होंने श्री राम से कहा कि जाओ और वाटिका से थोड़े से पुष्प और तुलसी दल ले आओ। इसके बाद गुरु जी ने मां सीता को देखा, तो उन्होंने भगवान राम से कहा कि यहां कि पुष्प वाटिका देवी सीता की है। इसलिए उनसे कह दो कि वहां से फूल और तुलसी दल ले आएं। ऐसे में मां सीता ने उनकी बात सुनकर वाटिका चली गई। वहां से उन्होंने फूल तोड़े और थोड़े से तुलसी के दल तोड़ लिया। इसके बाद जैसे ही वो आगे बढ़ी, तो हवा के तेज झोंके से उनका पल्लू तुलसी के पौधे में लग गया और काफी सारी तुलसी की पत्तियां टूटकर जमीन में गिर गई।

मां सीता ने तुलसी दल और पुष्प भगवान राम को दिए और उन्होंने जाकर गुरु विश्वामित्र को दे दिया। जब विश्वामित्र तुलसी के दल लिया, तो वह काफी गीले थे। फिर जैसे ही उन्होंने शालिग्राम को चढ़ाने की कोशिश की, तो वह उन्हीं के हथेली में चिपक गए। ऐसे में विश्वामित्र सोच में पड़ गए है कि आखिर तुलसी दल गीली कैसे हुई मैने तो उन्हें धोया नहीं। ऐसे में उन्होंने राम से पूछा कि क्या तुमने तुलसी के दल को धोया है? तो उन्होंने तुरंत ही न का उत्तर दिया।

ऐसे में विश्वामित्र ने तुलसी के दल से पूछा आखिर वह बिना धोएं गीली क्यों है? और क्यों भगवान शालिग्राम में नहीं चढ़ रही है। उनकी बात सुनकर तुलसी ने कहा कि मां सीता के पल्लू से तुलसी की कई पत्तियां जमीन में गिर गई है। हम सभी एक साथ में बड़े हुए है ऐसे में उनके टूट जाने का दुख है। इसी के कारण हम रो रहे हैं। जब विश्वामित्र ने उनकी ये बात सुनी, तो उन्होंने तुरंत ही राम से कहा कि जाओ देवी सीता को लेकर आएं। जैसे ही देवी सीता आई, वैसे ही विश्वामित्र ने उन्हें पूरी कहानी बतला दिया। इसके साथ ही आदेश दिया कि जमीन में गिरी तुलसी को दोबारा पौधे से जोड़ें। यह सुनकर मां सीता ने हाथ जोड़ते हुए कहा कि मेरी गलती से तुलसी की पत्तियां टूट गई। उसके लिए मैं माफी मांगती हूं। लेकिन यह बिल्कुल भी संभव नहीं है कि पत्ती टूटने के बाद उसे दोबारा जोड़ा जाए। यह सुनकर विश्वामित्र ने राम जी से कहा कि जाओ जमीन में गिरी हुए तुलसी के पत्ते लेकर आए और आज शालिग्राम में वहीं चढ़ाएंगे। कहा जाता है कि यह घटना जिस दिन हुई। उस दिन रविवार था। इसी के कारण रविवार को तुलसी की पत्तियां तोड़ने की मनाही होती है।