ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण की पूजा में ऐसी 10 वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है जिनके नहीं होने के कारण पूजा अधूरी रह सकती है।

आसन- भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति की स्थापना सुंदर आसन पर की जाती है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण को लाल, पीले और केसरिया रंग और रत्नों से सजा हुआ आसन पसंद होता है।

पाघ- जिस बर्तन में भगवान के चरणों को धोया जाता है, उसे पाघ की संज्ञा दी जाती है। भगवान कृष्ण के पांव धोते समय इसमें शुद्ध पानी और फूलों की पंखुडियां डालकर चरणों को धोया जाता है।

पंचामृत- इसे शहद, घी, दही, दूध और शक्कर को मिलाकर बनाया जाता है। इसके बाद ही भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण की पंचामृत के बिना पूजा पूरी नहीं होती है।

अनुलेपन- पूजा में प्रयोग किए जाने वाले दूर्वा, कुमकुम, चावल, सुगंधित फूल और शुद्ध जल को अनुपेलन कहा जाता है। इसका इस्तेमाल भगवान कृष्ण की पूजा में अवश्य किया जाता है।

आचमनीय- शुद्धिकरण के लिए प्रयोग किए जाने वाले जल को आचमनीय कहा जाता है। शुद्धिकरण से पहले आचमनीय में सुगंधित फूल डाले जाते हैं।

स्नानीय- श्री कृष्ण के स्नान के लिए प्रयोग में आने वाले द्रव्यों यानि पानी, दूध, इत्र और सुगंधित पदार्थ को स्नानीय कहा जाता है।

फूल- भगवान श्री कृष्ण की पूजा में सुगंधित और ताजे फूलों का महत्व माना जाता है। कृष्ण की पूजा में शुद्ध और ताजे फूलों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।

भोग- भगवान कृष्ण के पूजन में बनाए जा रहे भोग में मिश्री, ताजी मिठाइयां, ताजे फूल, लड्डू, खीर, तुलसी के पत्ते मिलाकर ही भोग लगाना चाहिए।

धूप- विभिन्न पेड़ों के अच्छे गोंद तथा अन्य सुगंधित पदार्थों से बनी धूप और अगरबत्ती भगवान कृष्ण की प्रिय मानी जाती हैं।

दीप- चांदी, तांबे या मिट्टी के बने दीपक में गाय का शुद्ध घी डालकर भगवान की आरती विधि के साथ की जानी चाहिए, उसी के बाद भगवान कृष्ण की पूजा सफल होती है।