कैलाश मानसरोवर यात्रा 8 जून से शुरु होने जा रही है जो 8 सितंबर तक चलेगी। कैलाश जिसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस स्थान पर जाने का कई लोगों का सपना होता है। लेकिन यह काफी दुर्गम यात्रा है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊंचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में चीन अधिकृत तिब्बत में स्थित है। यह मानसरोवर झील से घिरा होने के कारण इसका धार्मिक महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। विभिन्न धर्मों के लोग इस स्थान पर यात्रा करने के लिए आते हैं।
यह पर्वत पूरे साल बर्फ की चादर से ढका रहता है। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है यानि की इसकी खुद उत्पत्ति हुई है। और उतना ही पुराना है जितनी की ये सृष्टि है। इस अलौकिक स्थान पर प्रकाश और ध्वनि तरंगों का समागम होता है जो ‘ऊं’ की प्रतिध्वनि करता है। पुराणों में वर्णित कल्पवृक्ष कैलाश पर्वत की तलछटी में लगा हुआ है। माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान समुद्र में से निकली 14 वस्तुओं में कल्पवृक्ष की भी प्राप्ति हुई थी। इस पर्वत का स्वरूप काफी अद्भुत है। यही वजह है इसके हर भाग को अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है। पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण के रूप में माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह स्थान कुबेर की नगरी था। कहा ये बी जाता है कि यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर मां गंगा कैलास पर्वत की चोटी पर गिरती है। फिर यहां से भोलेनाथ उन्हें अपनी जटाओं में भरकर धरती पर प्रवाहित करते हैं।
कैलाश में मानसरोवर दर्शन की विशेष महिमा है। मान्यता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की थी। इसके अलावा उन्होंने इसी झील के किनारे कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। इसके अलावा इस जगह के बारे में बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों से सभी तरह के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार किया जा सकता है।
यात्रा का कुल खर्च
क्योंकि यह काफी लंबी यात्रा होती है जिसे पूरा करने में लगभग 24 दिन का समय लग जाता है। इसी कारण हर एक यात्री का यहां कुल खर्च करीब 1.8 लाख रुपए हो सकता है। बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच पदयात्रा थोड़ी चुनौतीपूर्ण होती है लेकिन यहां का सौंदर्य पर्यटकों की थकावट दूर करने का काम करता है।