हिंदू धर्म में शरद ऋतु की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चांद अपने चरम पर होता है। इस रात चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त होता है। चंद्रमा की ये 16 कलाएं इस प्रकार से हैं- अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण, पूर्णामृत और अमा। चांद की इन 16 कलाओं को बड़ा ही शुभ माना जाता है। कहते हैं कि जिस व्यक्ति के ऊपर इन कलाओं का प्रभाव पड़ता है, वह पूर्ण हो जाता है। मालूम हो कि शरद पूर्णिमा पर पूरी रात खुले आसमान में खीर रखी जाती है। इसे बड़ा ही शुभ फलदायी माना गया है।

कहते हैं कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा से मिलने मिलने वाले सुखों को प्राप्त करने के लिए खुले आसमान में खीर रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इससे खीर पर चंद्रमा की संपूर्ण कलाओं का प्रभाव पड़ता है। इस खीर को सुबह में प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस प्रसाद का लोग अपने परिजनों में वितरण भी करते हैं। मान्यता है कि चंद्रमा की समस्त कलाओं का फल मिलने से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और हर तरह का सुख मिल जाता है। व्यक्ति का जीवन आनंद से भर जाता है।

मालूम हो कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि लक्ष्मी जी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। इस प्रकार से शरद पूर्णिमा अपने आप में बहुत खास हो जाती है। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मी जी अपने वाहन उल्लू की सवारी करती हैं। माना जाता है कि मां इस सवारी से भगवान विष्णु के पृथ्वी का भ्रमण करती हैं। इसलिए आसमान पर चंद्रमा भी सोलह कलाओं से चमकता है। ऐसे में शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी के साथ विष्णु जी की पूजा को बहुत ही खास माना गया है।