Karwa Chauth Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ पर शिव-पार्वती जी की पूजा करने के साथ चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला जाता है। विधि-विधान से पूजा करने के साथ करवा चौथ का कथा पढ़ना लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि करवा चौथ पर जो महिला कथा पढ़ती है या फिर सुनती है, तो उसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं करवा चौथ की संपूर्ण कथा।
करवा चौथ की कथा
बहुत पुरानी बात है कि एक नगर में एक साहूकार रहता था। जिसके साथ बेटे और एक बेटी थी। बेटी का नाम करवा था। अपनी प्यारी बेटी की धूमधाम से शादी करके उसे ससुराल के लिए विदा कर दिया। भाई अपनी बहन से बहुत ही प्यार करते थे। एक बार की बात है कि बहन अपने ससुराल से मायके आई हुई थी। जहां उसने अपनी भाभियों के साथ मिलकर करवा चौथ का व्रत रखा। लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी। सभी भाई को उसकी ये हालत देखी नहीं गई, क्योंकि चंद्रमा निकलने पर अभी काफी समय था। उन्होंने अपनी बहन से पानी पीने के लिए कहा, तो उसने कहा कि चांद निकलने के बाद ही वह खा पी सकती हैं। ऐसे में सभी भाई काफी व्याकुल हो गए। ऐसे में सबसे छोटे भाई को रहा नहीं गया। उसने दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया। दूर से देखने पर वह चांद जैसा प्रतीत हो रहा था। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि देखो चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देकर भोजन कर सकती हो। बहन ने खुशी से चांद को देखा और उसे अर्घ्य दे दिया।
चांद को अर्घ्य देने के बाद वह जब हंसी-खुशी खाना खाने बैठी, तो वह जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालते ही उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही वह तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने को होती है तो उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिलता है। ऐसे में वह काफी उदास होती है। तब उसकी भाभी उसे भाई द्वारा की गई हरकत की सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद वो निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रही। उसकी देखभाल करती रही। उसके ऊपर उगने वाली घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं और जब उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है। लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उस भाभी से भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई के कारण उसका यह व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे छोड़ना नहीं। ऐसा कह कर वह चली जाती है।
सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है। लेकिन वह इधर-उधर की बात करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। उसकी भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी का मन पसीज जाता है और वह अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ जीवित हो जाता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। तभी से हर सुहागिन महिला करवा चौथ का व्रत पूर नियम के साथ रखती है।