इस साल कजरी तीज 6 अगस्त को पड़ रही है। महिलाएं अपने पति की सलामती के लिए कजरी तीज पर निर्जला व्रत रखती हैं। कजरी तीज व्रत का महत्व प्राचीन काल से माना जाता रहा है। मान्यता है कि जो स्त्रियां इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं, भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से उनके सुहाग को लम्बी उम्र और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत का महत्व इतना अधिक है कि मान्यतानुसार कुवांरी कन्याएं अगर इस व्रत को करती हैं तो उनके विवाह के योग बनते हैं।

साथ ही इस व्रत के प्रभाव से उन्हें मनचाहे वर का वरदान भी मिलता है। यह व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस व्रत में नीमड़ी माता की पूजा की जाती है। साथ ही चंद्रमा को अर्घ्य देकर इस व्रत को पूरा माना जाता है।

कजरी तीज की पूजा विधि (Kajari Teej Ki Puja Vidhi):

यह व्रत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के कई क्षेत्रों में रखा जाता है। इस व्रत को रखने वाली सुहागिन स्त्रियों की इसमें बहुत अधिक श्रद्धा होती है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत इतना अधिक प्रभावशाली है कि यदि कोई भी सुहागिन स्त्री सच्चे मन से अपने पति के हित का संकल्प लेकर व्रत करती है तो उसकी मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है। यह व्रत अनेकों सुखों को देने वाला है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से पारिवारिक सुखों में बढ़ोतरी होती है।

कजरी तीज व्रत कथा (Kajari Teej Vrat Katha) :

कहा जाता है कि नीमड़ी माता की कृपा पाने का यह साल भर में केवल एक ही दिन है। राजस्थान के कई क्षेत्रों में ऐसा माना जाता है कि अगर नीमड़ी माता किसी परिवार पर अपनी कृपा करें तो उस परिवार पर कभी कोई संकट नहीं आता है। नीमड़ी माता को भोग में गेंहू, चावल, चना, घी और मेवों से बना प्रसाद बहुत प्रिय है। इसलिए सभी व्रती स्त्रियां इस व्रत में माता नीमड़ी को इस भोग का प्रसाद जरुर अर्पित करती हैं।

ऐसी मान्यता है कि जो भी कुंवारी कन्या नीमड़ी माता, भगवान शिव और देवी पार्वती को इस व्रत से प्रसन्न कर लेती हैं उन्हें अच्छा जीवनसाथी मिलता है। साथ ही अगर वह अपने मनचाहे जीवनसाथी से विवाह करने की इच्छा रखकर यह व्रत करती हैं तो उन्हें अपने मनचाहे वर से विवाह करने का वरदान मिलता है।