राधिका नागरथ
वैज्ञानिक सोच रखने वाले हमारे ऋषि मुनि एवं पूर्वजों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए धर्म को हमारी दिनचर्या के साथ जोड़ दिया था। उन्हें मालूम था कि यदि किसी चीज को बचाना है तो उसको धर्म से जोड़कर हम पीढ़ी दर पीढ़ी एक संदेश पहुंचा सकते हैं। यही कारण है कि उन्होंने नदियों को मां की संज्ञा देकर उनकी पूजा, वंदना, आरती की परंपरा का आवाहन किया। वृक्ष जो हमारे प्राण के आधार हैं, विशेषत: भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों को जल से सींचना, उनकी परिक्रमा करना, एवं उनके काटने पर पाप का भागीदार बनना, यह सब बातें हमें शुरू से ही हमारे बड़े समझाते आए हैं। पंच पल्लव वृक्ष बड़, पीपल, आम, अशोक और गूलर को लगाना एवं इन वृक्षों की पूजा करना, युगों से इस परंपरा का प्रतिपादन ऋषि-मुनियों ने किया है। इन सब धारणाओं के पीछे एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक सोच है।

जन्म के बाद से मृत्यु पर्यंत व्यक्ति भरपूर पेड़ों का उपयोग करता है किंतु वह कितने पेड़ जीवन में लगाता है, यदि इसका हिसाब किया जाए तो शायद एक भी दिन जीने के हकदार नहीं। जिन पेड़ों से हम ऑक्सीजन लेते हैं अपनी प्राणशक्ति जहां से पाते हैं, क्या उनके स्वास्थ्य के लिए हमें सोचना नहीं चाहिए। हर व्यक्ति अगर एक पौधा गोद ले ले और उसे पानी दे तो शायद उसे ऑक्सीजन के लिए कभी मजबूर ना होना पड़ेगा, कभी असहाय नहीं होना पड़ेगा होगा । क्योंकि प्रकृति का नियम है, कर्म का सिद्धांत कहता है कि जो दोगे वही वापस पाओगे।

आज करोना महामारी फैलने से सब ओर ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा है। ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी होने पर कालाबाजारी शुरू हो गई। पेड़ों का इस हद तक कटान जारी है चाहे राजमार्ग बनाने के लिए हो या घर बनाने के लिए, हालात यह हो गए हैं कि आज श्मशान घाट में भी दाह संस्कार के लिए लकड़ी की कमी होने लगी है। जिस गति से पेड़ काटे जा रहे हैं, उस गति से उनका रोपण नहीं हो रहा। हाल ही में बहुत सी जगह पर करोना से मृत लोगों के शव जलाने के लिए पर्याप्त लकड़ी नहीं मिली तो शवों को गंगा के तथा अन्य नदियों के तट पर रेत में ही दफना दिया।

कहते हैं बिना खाने के व्यक्ति तीन हफ्ते जिंदा रह सकता है, बिना पानी के तीन दिन किंतु बिना हवा के तीन मिनट भी व्यक्ति जिंदा नहीं रह सकता। हर व्यक्ति की जरूरत रोजाना 550 लीटर ऑक्सीजन है। शुद्ध हवा में 19.5 फीसद ऑक्सीजन की मात्रा होती है। यदि यह पूर्ति ना हो तो व्यक्ति को घुटन महसूस होने लगती है जैसा कि आजकल किसी भी बड़े शहर में एक आम आदमी अनुभव कर रहा है। एअर कंडीशनर के प्रयोग से यह स्थिति और भी खराब हुई है। बहुत बार ऐसे मामले सामने आए हैं जब बच्चे को कार में सोने के लिए छोड़ दिया कार का एअर कंडीशन चलाकर और कुछ घंटे बाद में बच्चा मृत मिलता है। घरों में भी लोग एअर कंडीशनर लगाने के लिए खिड़कियां बंद रखते हैं और जब खुली हवा नहीं आती, ऑक्सीजन नहीं मिलती है तो व्यक्ति के फेफड़े कमजोर होने लगते हैं। हमारे शरीर में कैंसर कोशिकाएं भी तभी बढ़ने लगती हैं जब उनको ऑक्सीजन की कमी होती है।

इसलिए मनुष्य को बैंक में पैसे बढ़ाने के साथ ऑक्सीजन बैंक अपने पर्यावरण में बढ़ाएं। समय रहते ऑक्सीजन बैंक बढ़ा लें ताकि उसका मोहताज ना होना पड़े। जितना हो सके अपने आसपास पेड़ पौधे लगाएं। आप फ्लैट में रहते हैं तो गमलों में लगाएं, पास में कोई पार्क है तो उसमें लगाएं। जहां भी कच्ची जगह दिखे वहां पर पेड़ लगाएं पीपल, बड़, नीम, पिलखन, विल्व, गूलर वृक्ष लगाएं और अपने घर के आंगन में भी पौधारोपण करें। पेड़ कोई अपने पास ऑक्सीजन नहीं रखेगा वह तो बांटेगा ही। तभी कहा गया है मनुष्य को परमार्थ जीवन का सबक यदि लेना चाहिए तो वृक्षों से लेना चाहिए। वृक्षों का सारा जीवन परमार्थ के लिए होता है जहां वह फल देता है वही छाया प्रदान करता है और पृथ्वी पर जल की मात्रा बढ़ाता है और सूखने पर उसकी लकड़ी ईंधन के काम आती है और जब हरा भरा होता है तो भरपूर प्राणवायु देता है।