Janeu Sanskar: हिंदू धर्म में जनेऊ यानी  यज्ञोपवीत संस्कार प्रमुख संस्कारों में से एक माना जाता है। जनेऊ धारण करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसे उपनयन संस्कार भी कहा जाता है। उपनयन का अर्थ है पास या सन्निकट ले जाना यानी ईश्वर और ज्ञान के पास ले जाना। इसे 24 संस्कारों में से एक माना जाता है। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है, जो काफी पवित्र माना जाता है। इस धागे को पुरुष बाएं कांधे से दाएं बाजू के नीचे पहनते है।  प्रसिद्ध श्री आचार्य जी ने बताया है कि जनेऊ धारण करने के बाद किन बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है और क्या है इसके लाभ।

जनेऊ में क्यों होते हैं तीन धागे?

आचार्य जी के अनुसार, जनेऊ में मुख्य रूप से तीन धागे होते हैं, जो देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं। इन्हें  सत्व, रज और तम का प्रतीक है।  इसके साथ ही इसे गायत्री मंत्र के तीन चरणों और तीन आश्रमों का प्रतीक माना जाता है।

जनेऊ के नौ तार का मतलब

यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं यानी कुल नौ तार होते हैं। ये तार एक मुख, दो नाक, दो आंख, दो कान, दो मल और मूत्र के होते हैं।

जनेऊ में क्यों लगती है 5 गांठ?

यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है, जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। इसके अलावा ये 5 यज्ञों, पांच ज्ञानेंद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक माना जाता है।

जनेऊ धारण करने से मिलने वाले लाभ

  • मूत्र विसर्जन करते समय दाएं कान में जनेऊ चढ़ाई जाती है। आचार्य जी के अनुसार ऐसे धारण करने से कई शुभ फलों की प्राप्ति होती है।  माना जाता है कि  दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
    बुरे स्वप्न आने की समस्या से निजात पाने के लिए जनेऊ धारण करना लाभकारी हो सकता है।
  • शास्त्रों के अनुसार, कान में जनेऊ लपेटने से सूर्य नाड़ी जाग्रत हो जाती है।
    जनेऊ धारण करने से पेट संबंधी रोगों के अलावा  ब्लड प्रेशर की समस्या से बचाव होता है।
    जनेऊ धारण करने से मन शांत रहता है, जिससे क्रोध की भावना उत्पन्न नहीं होती है।

जनेऊ धारण किया है, तो ध्यान रखें ये बातें

  • अगर किसी व्यक्ति ने जनेऊ धारण की है, तो इसे कुछ नियमों का जरूर पालन करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इन नियमों का पालन न करने से इसकी पवित्रता भंग हो जाती है और ये सिर्फ एक धागा रह जाता है। जानिए जनेऊ धारण करने के बाद कौन से नियम करें पालन।
  • यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन करने जाएं, तो इस बात का ध्यान रखें कि अपनी पूर्व दाएं कान जनेऊ को जरूर चढ़ा लें। इसके बाद हाथ धोने के बाद ही इसे तान से उतारना चाहिए।
  • यज्ञोपवीत का कोई भी तार टूट गया है, तो उसे तुरंत बदल देना चाहिए या फिर अगर 6 माह धारण किए हो चुके हैं, तो उसे तुरंत बदल देना चाहिए। माना जाता है कि गंदा या फिर खंडित जनेऊ धारण करने से अशुभ फलों की प्राप्ति होती है।
  • कई लोगों की आदत होती है कि जनेऊ में चाबी या कोई अन्य चीज बांध देते हैं। बिल्कुल भी ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होती है।