Jagannath Mandir Ki Tisri Sidhi Ka Rahasya: ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी रथ यात्रा 27 जून से शुरू हो चुकी है। यह यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है और इस बार यह 5 जुलाई को ‘बहुड़ा यात्रा’ के साथ समाप्त होगी। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ भक्तों को दर्शन देने के लिए अपने-अपने रथों पर निकलते हैं। हर साल इस रथ यात्रा में भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु भाग लेने पुरी पहुंचते हैं। यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आस्था और भक्ति का अद्भुत संगम भी है। माना जाता है कि जो व्यक्ति इस यात्रा में भाग लेता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वहीं, इस दिव्य धाम से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं, जो आज भी विज्ञान और तर्क की सीमाओं से परे हैं। इन्हीं में से एक रहस्य है इस मंदिर की तीसरी सीढ़ी का, जिसे लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इस खास सीढ़ी पर पैर रखना वर्जित माना जाता है क्योंकि इसका संबंध यमराज से जुड़ा हुआ है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर क्यों है जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी इतनी रहस्यमयी…

गुंडीचा मंदिर तक जाती है यात्रा

यह यात्रा पुरी से गुंडीचा मंदिर तक जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, गुंडीचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। भगवान वहां 9 दिन तक विश्राम करते हैं। इसके बाद वापसी यात्रा होती है, जिसे ‘बहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है।

22 सीढ़ियों वाला रहस्यमयी मंदिर

पुरी का जगन्नाथ मंदिर केवल अपनी भव्य रथ यात्रा के लिए ही नहीं, बल्कि अपने रहस्यमयी तथ्यों के लिए भी जाना जाता है। मंदिर में प्रवेश के लिए कुल 22 सीढ़ियां हैं, जिन्हें ‘बैसी पहाचा’ कहा जाता है। लेकिन इन सीढ़ियों में से एक विशेष सीढ़ी है, जिस पर भक्त पैर नहीं रखते हैं। दरअसल, मंदिर की तीसरी सीढ़ी को लेकर एक खास पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से ही भक्तों के सारे पाप कट जाते थे। इससे यमराज परेशान हो गए क्योंकि उनके लोक में कोई आ ही नहीं रहा था। तब उन्होंने भगवान जगन्नाथ से शिकायत की।

यमराज को मिला तीसरी सीढ़ी पर स्थान

भगवान जगन्नाथ ने यमराज से कहा कि वे मंदिर की मुख्य सीढ़ियों में से तीसरी सीढ़ी पर अपना स्थान बना लें। और जो भी भक्त दर्शन के बाद उस सीढ़ी पर पैर रखेगा, उसे यमलोक जरूर जाना पड़ेगा। तभी से यह परंपरा बन गई कि भक्त मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखते।

लोग करते हैं सिर से स्पर्श, नहीं रखते पैर

आज भी मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालु तीसरी सीढ़ी पर न तो पैर रखते हैं और न ही उस पर चढ़ते हैं। वे सिर झुकाकर उस सीढ़ी को प्रणाम करते हैं और फिर अगली सीढ़ी पर कदम रखते हैं। यह एक गहरी आस्था और परंपरा से जुड़ी श्रद्धा का प्रतीक है।

पुरी का जगन्नाथ मंदिर न केवल हिंदू धर्म के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है, बल्कि यह रहस्यों और मान्यताओं का भी बड़ा केंद्र है। यहां की रथ यात्रा, गुंडीचा मंदिर की यात्रा और सीढ़ियों से जुड़ी मान्यताएं इसे और भी खास बनाती हैं।

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