इस समाज में जन्म लेने वाला व्यक्ति बहुत से लोगों से जुड़ा होता है। इंसान इस धरती पर अकेला आता तो है लेकिन जहां वह जन्म लेता है उससे काफी सारे रिश्ते जुड़ जाते हैं। लेकिन जब व्यक्ति से उसका कोई खास दूर चला जाता है तो उसे बेहद ही दुख और अफसोस होता है। जीवन के सबसे बड़े दुख से कैसे कोई व्यक्ति बाहर निकल सकता है, इस बारे में ओशो धारा के माध्यम से सद्गुरु ओशो शैलेन्द्र जी ने ये कहा है कि…
‘सबसे पहले तो इस बात का ध्यान रखें कि जल्दबाजी ना करें। जैसे किसी परिजन के बिछड़ जाने पर दुख होना स्वभाविक है। क्योंकि उस इंसान के साथ हमने खुशी के पल बिताए थे। इस दुख से निकलने के लिए आप अपने को शक्ति दें और इस बात को समझे की मृत्यु निश्चित है। इसे रोका नहीं जा सकता है। मन की स्थिति को सामान्य होने में समय लगेगा इसके लिए संयम रखें। चाहे कितनी भी सुखद घटना हो या कितनी ही दुखद घटना हो उससे बाहर आने के लिए 100 दिन या साढ़े तीन महीने लगते हैं।’
अपने प्रवचन में ओशो शैलेन्द्र जी ने कहा कि ‘एक मनोवैज्ञानिक ने इस बात को समझने के लिए एक रिसर्च की, जिसमें अलग-अलग लोगों की प्रतिक्रिया ली गईं। उदाहरण स्वरूप एक गरीब व्यक्ति था जिसकी लोटरी लग गई और वह अचानक करोड़पति बन गया। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। दूसरा उदाहरण एक 30 वर्षीय महिला का कार एक्सीडेंट हो गया जिसमें उसके दोनों पैर काटने पड़े। मनोवैज्ञानिक ने इन दोनों ही घटनाओं से निष्कर्ष निकाला कि दोनों ही व्यक्ति 3 महीने बाद सामान्य मनोस्थिति में थे। उस घटना का उनके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। धीरे-धीरे हम उस घटना के साथ एडजस्ट हो जाते हैं।
आप किसी भी चीज से ज्यादा दिन खुश या दुखी नहीं रह सकते हैं क्योंकि वह चीज आपको धीरे-धीरे सामान्य लगने लगती है। मनोवैज्ञानिक ने अपनी रिसर्च में इस बात का पता लगाया कि सिर्फ मानसिक तौर पर परेशान व्यक्ति ही किसी दुखद या खुशी की घटना को काफी समय या जिंदगी भर झेलते हैं लेकिन कोई भी सामान्य व्यक्ति इस तरह की बड़ी घटनाओं से सिर्फ 100 दिनों में बाहर आ जाता है।’