Holi History in Hindi: होली का नाम सुनते ही हमारे मन में रंग, उमंग और पकवानों की खुशबू बस जाती है। यह भारत के सबसे प्राचीन और प्रमुख त्योहारों में से एक है, लेकिन इसकी शुरुआत को लेकर कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती। हालांकि, होली से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध कथा है हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की, लेकिन इसके अलावा राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, कामदेव और राक्षसी धुंधी से जुड़ी कथाएं भी प्रचलित हैं। ऐसे में आइए, इन कहानियों को विस्तार से जानते हैं।
हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा
होली से जुड़ी यह कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है। दरअसल, हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा राक्षसों का एक राजा था। वह भगवान विष्णु को अपना दुश्मन मानता था। राक्षस राजा अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर रोक लगा दी थी। लेकिन हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद विष्णु भक्त था। उसने अपने बेटे को कई यातनाएं दीं। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया, हाथी के पैरों से कुचलवाया, लेकिन वह बचता रहा और भगवान विष्णु की भक्ति करता रहा। अंत में, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जिसे आग में न जलने का वरदान था, वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी। लेकिन होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है।
राधा-कृष्ण और रंगों की होली
एक कथा के अनुसार, होली खेलने का संबंध श्री कृष्ण और ब्रज की राधा से है। एक गाना आपने भी सुना होगा, यशोमती मैया से बोले नंद लाला, राधा क्यों गोरी…’ इससे ही कहानी जुड़ी हुई है। दरअसल, कृष्ण ने अपनी माता यशोदा से पूछा कि राधा इतनी गोरी क्यों हैं? यशोदा जी ने मजाक में कहा कि तुम राधा को अपने जैसा रंग लगा दो। तब कृष्ण ने अपने सखाओं के साथ मिलकर रंग तैयार किए और ब्रज में राधा रानी को रंग लगाने पहुंच गए, जिससे रंग वाली होली की परंपरा शुरू हुई। आज भी बरसाना की लठमार होली इस परंपरा की याद दिलाती है।
कृष्ण द्वारा पूतना वध
होली पर कृष्ण और उनके मामा कंस से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है। दरअसल, कंस ने अपने भांजे कृष्ण को मारने के लिए पूतना नाम की राक्षसी को भेजा, जो बच्चों को विषपान कराकर मार देती थी। लेकिन कृष्ण ने उसकी सच्चाई समझ ली और पूतना का वध कर दिया। कहा जाता है कि यह घटना फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हुई थी, इसलिए लोग इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होली मनाने लगे।
शिव-पार्वती और कामदेव की कथा
एक कथा के अनुसार, संसार की पहली होली भगवान शिव ने खेली थी। दरअसल, भगवान शिव जब कैलाश पर ध्यान में लीन थे, तब कामदेव ने उनकी तपस्या भंग करने की कोशिश की। शिव ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया, जिससे उनकी पत्नी रति दुखी हो गईं। रति की प्रार्थना पर शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवित किया। इसी खुशी में भोज का आयोजन किया जिसमें सभी देवी-देवताओं ने हिस्सा लिया। कथा के अनुसार, इस भोज में शिव जी ने डमरू बजाया, भगवान विष्णु ने बांसुरी बजाई, पार्वती जी ने वीणा बजाई और सरस्वती जी ने गीत गाए। इसी खुशी में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन उत्सव मनाया गया, जिसे बाद में होली के रूप में मनाया जाने लगा।
राक्षसी धुंधी की कहानी
राजा पृथु के समय धुंधी नाम की राक्षसी बच्चों को खा जाती थी। उसे कोई मार नहीं सकता था, लेकिन वह बच्चों की शरारतों से बच नहीं सकती थी। इसलिए फाल्गुन पूर्णिमा के दिन बच्चों ने आग जलाकर धुंधी पर कीचड़ फेंका और शोर मचाया, जिससे वह नगर से भाग गई। तब से होलिका दहन और धूलिवंदन की परंपरा शुरू हुई।
होलिका दहन से रंगों की होली तक
होली की शुरुआत को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। माना जाता है कि बरसाने में राधा-कृष्ण के प्रेम और रंगों के खेल से होली का रूप बना। धीरे-धीरे यह त्योहार पूरे देश में फैल गया।
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