Holi 2025: होली को रंगों और उमंग का त्योहार माना जाता है, लेकिन धार्मिक दृष्टि से यह दिन भगवान की आराधना के लिए भी बेहद शुभ होता है। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाती है और इस साल होली 14 मार्च 2025 को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अगर श्रद्धा से भगवान कृष्ण और राधा रानी की पूजा की जाए, तो जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इसके साथ ही राधा-कृष्ण की कृपा से प्रेम और वैवाहिक जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
वहीं, ज्योतिष की मानें तो होली के दिन श्री राधा कृष्ण अष्टकम का पाठ करना बेहद फलदायी माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन की परेशानियां दूर होती हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, होली पर इस पाठ को करने से दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है और घर में खुशहाली आती है।
इस विधि से करें स्तोत्र का पाठ
होली खेलने से पहले सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को साफ करें। फिर राधा-कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर को पूजा स्थल पर स्थापित करें। उसके बाद धूप-दीप जलाकर भगवान को पुष्प, माखन-मिश्री और फल अर्पित करें। श्री राधा कृष्ण अष्टकम का पाठ करें और ध्यान लगाकर भगवान का स्मरण करें। पूजा के बाद श्रीकृष्ण की आरती करें और सबसे पहले गुलाल उन्हें अर्पित करें। भगवान से अपनी मनोकामना कहें और आशीर्वाद मांगें। अंत में प्रसाद बांटें और परिवार के साथ होली मनाएं।
श्री राधा कृष्ण अष्टकम
चथुर मुखाधि संस्थुथं, समास्थ स्थ्वथोनुथं।
हलौधधि सयुथं, नमामि रधिकधिपं॥
भकाधि दैथ्य कालकं, सगोपगोपिपलकं।
मनोहरसि थालकं, नमामि रधिकधिपं॥
सुरेन्द्र गर्व बन्जनं, विरिञ्चि मोह बन्जनं।
वृजङ्ग ननु रञ्जनं, नमामि रधिकधिपं॥
मयूर पिञ्च मण्डनं, गजेन्द्र दण्ड गन्दनं।
नृशंस कंस दण्डनं, नमामि रधिकधिपं॥
प्रदथ विप्रदरकं, सुधमधम कारकं।
सुरद्रुमपःअरकं, नमामि रधिकधिपं॥
दानन्जय जयपाहं, महा चमूक्षयवाहं।
इथमहव्यधपहम्, नमामि रधिकधिपं॥
मुनीन्द्र सप करणं, यदुप्रजप हरिणं।
धरभरवत्हरणं, नमामि रधिकधिपं॥
सुवृक्ष मूल सयिनं, मृगारि मोक्षधयिनं।
श्र्वकीयधमययिनम्, नमामि रधिकधिपं॥
वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम्।
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम्॥
राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम्।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम्॥
राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम्।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम्॥
राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम्।
राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम्॥
ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम्।
तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम्॥
निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम्।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम्॥
यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम्।
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम्॥
बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम्।
वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम्॥
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम्।
गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः।
इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम्॥
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम्।
पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः॥
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