प्राचीन समय से हम देखते और सुनते आ रहे हैं कि जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो सब उसके शव को शमशान में ले जाते वक्त उनके परिजन ‘राम नाम सत्य है’ ये बोलते हैं। इस तरह बोलते हुए मृतक के शरीर को शमशान भूमि की ओर ले जाते हैं। परंतु ये बोलने का असल उद्देश्य कुछ ही लोग जानते हैं। बाकी ऐसे ही इस परंपरा का पालन कर रहे हैं। हिन्दू धर्म में किए जाने वाले संस्कारों के पीछे धार्मिक और वौज्ञानिक कारण बताए गए हैं। आगे हम जानते हैं कि शवयात्रा के समय इसमें शामिल होने वाले लोग ‘राम नाम सत्य है’ को ही क्यों बोलते हैं?

मृतक की शवयात्रा के समय लगाए जाने वाले ‘राम नाम सत्य है’ के नारे के संबंध में महाभारत के पात्र धर्मराज युधिष्ठिर ने एक श्लोक के माध्यम से कहा है।  जिसका अर्थ है कि मृतक को जब शमशान ले जाते हैं तब कहते हैं ‘राम नाम सत्य है’ परंतु जैसे ही घर लौटे तो राम नाम को भूल माया-मोह में लिप्त हो जाते हैं। मृतक के घर वाले ही सबसे पहले मृतक के धन को संभालने की चिंता में लगते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा है कि नित्य ही प्राणी मरते हैं लेकिन शेष परिजन संपत्ति को ही चाहते हैं। इससे बढ़कर और अधिक आश्चर्य क्या हो सकता है?

दरअसल शवयात्रा में ‘राम नाम सत्य है’ यह बोलकर मृतक को सुनाना नहीं होता है, बल्कि साथ में चल रहे परिजन, मित्र और वहां से गुजर रहे लोग इस तथ्य से परिचित हो जाएं कि राम का नाम ही सत्य है। साथ ही जब मनुष्य जब राम का नाम लेगा तभी उसकी सदगति होगी। इसलिए इसका मकसद यह कहकर परंपरा शुरू की गई थी कि मृतक के मरने के पीछे जब मनुष्य इतना लड़ते हैं, उसकी संपत्ति के लिए वाद-विवाह करते हैं और संपत्ति का बंटवारा करते हैं, लेकिन अन्य व्यक्ति को भी यह मालूम होना चाहिए कि राम का नाम सत्य है यानि जिसने इस धरती पर जन्म लिया, उसकी मृत्यु निश्चित है। मान्यता है कि इन्हीं सब कारणों की वजह से शवयात्रा में ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हैं।