मलयालम पंचांग के अनुसार वृश्चिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गुरुवायुर एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष 30 नवंबर 2017 को गुरुवार के दिन गुरुवायुर एकादशी मनाई जाएगी। मंडल काल के दौरान इस एकादशी अधिक महत्व माना जाता है। गुरुवायुर एकादशी प्रमुख रुप से केरल के प्रसिद्ध गुरुवायुर श्री कृष्ण मंदिर जिसे स्वामी गुरुवायुरप्पन धाम के नाम से भी जाना जाता है। स्वामी गुरुवायुरप्पन सबसे अधिक हाथियों के स्वामी माने जाते हैं। गुरुवायुर एकादशी के दिन विशेष रुप से हाथियों की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इस दिन के लिए कुछ विशेष कथाएं प्रचलित हैं।
गुरुवायुर एकादशी के इतिहास से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। माना जाता है कि भगवान विष्णु एक बार गहरी निद्रा में थे, तभी मुर्दानव नाम के राक्षस ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की इंद्रियों से एक सुंदर युवती उत्पन्न हुई। वो युवती इतनी सुंदर थी कि राक्षस उसे देखते ही आकर्षित हो गया और उसने युवती से शादी करने का प्रस्ताव रख दिया। युवती ने शादी के स्वीकृति देते हुए कहा कि वो शादी तो करेगी लेकिन उसकी एक शर्त राक्षस को माननी होगी। राक्षस आकर्षण में अपनी बुद्धि खो चुका था उसे सच नहीं दिखाई दिया और उसने युवती से युद्ध करने के लिए मान गया। युवती ने उस राक्षस का युद्ध के दौरान वध कर दिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि उस युवती की हर एकादशी के दिन पूजा की जाएगी।
केरल के प्रसिद्ध मंदिर गुरुवायुर के लिए एक पौराणिक कथा के अनुसार गुरुवायुर मंदिर में स्थापित मूर्ति पहले द्वारका में थी। माना जाता है कि ऐतिहासिक द्वारका पुरी जलमग्न हो गया था और उसमें मूर्ति भी बह गई थी। भगवान कृष्ण की मूर्ति बृहस्पति देव को तैरती हुई दिखी। उन्होनें वायु देव की सहायता लेकर मूर्ति को उचित स्थान पर स्थापित करने का फैसला लिया। उचित स्थान की खोज में वह केरल पहुंचे। वहां उन्हें भगवान शिव और देवी पार्वती के दर्शन हुए। भगवान की आज्ञा से उन्होंने मूर्ति की स्थापना केरल में ही की। क्योंकि इस मूर्ति की स्थापना गुरु और वायु ने की इसलिए इसका नाम ‘गुरुवायुर’ रखा गया। केरल का ये प्रसिद्ध मंदिर भारत के उन मंदिरों में से जिनमें आज भी गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है।


