योगेश कुमार गोयल
सिख धर्म के आदि संस्थापक और सिखों के पहले गुरु हैं गुरु नानक देव, जो केवल सिखों में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी उतने ही सम्माननीय हैं। उनका जन्म तलवंडी (जो भारत-पाक बंटवारे के समय पाकिस्तान में चला गया) में 1469 में हुआ था। प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु नानक जयंती मनाई जाती है, जिसे ‘प्रकाश पर्व’ भी कहा जाता है और इस बार गुरु नानक का 553वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है।
नानक जब पांच साल के थे, तभी धार्मिक और आध्यात्मिक वार्ताओं में गहन रुचि लेने लगे थे। अपने साथियों के साथ बैठकर वे परमात्मा का कीर्तन करते। दिखावे से कोसों दूर वे यथार्थ में जीते थे। जिस कार्य में उन्हें दिखावे अथवा प्रदर्शन का अहसास होता, उसकी वास्तविकता जानकर वे विभिन्न सारगर्भित तर्कों द्वारा उसका खंडन करने की कोशिश करते।
नानक जब नौ वर्ष के हुए तो उनके पिता कालूचंद खत्री, जो पटवारी थे और खेती-बाड़ी का कार्य भी करते थे, ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कराने के लिए पुरोहित को बुलाया। पुरोहित ने यज्ञोपवीत पहनाने के लिए नानक के गले की ओर हाथ बढ़ाया तो नानक ने उनका हाथ पकड़कर पूछा कि आप यह क्या कर रहे हैं और इससे क्या लाभ होगा? पुरोहित ने कहा कि बेटे, यह जनेऊ है, जिसे पहनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और इसे पहने बिना मनुष्य शूद्र की श्रेणी में रहता है। तब नानक ने उनसे पूछा कि पुरोहित जी, सूत का बना यह जनेऊ मनुष्य को भला मोक्ष कैसे दिला सकता है क्योंकि मनुष्य का अंत होने पर जनेऊ तो उसके साथ परलोक में नहीं जाता। नानक के इन शब्दों से सभी व्यक्ति बहुत प्रभावित हुए और आखिरकार पुरोहित को कहना पड़ा कि बेटा, तुम सत्य कह रहे हो, वास्तव में हम अंधविश्वासों में डूबे हैं।
गुरु नानक का विवाह 19 वर्ष की आयु में गुरदासपुर के मूलचंद खत्री की पुत्री सुलखनी के साथ हुआ किन्तु धार्मिक प्रवृत्ति के नानक को गृहस्थाश्रम रास नहीं आया और वे सांसारिक मायाजाल से दूर रहने का प्रयास करने लगे। पिता ने उन्हें व्यवसाय में लगाना चाहा किन्तु इसमें उनका मन नहीं लगा। एक बार पिता ने कोई काम-धंधा शुरू करने के लिए उन्हें कुछ धन दिया लेकिन नानक ने सारा धन साधु-संतों और जरूरतमंदों में बांट दिया और एक दिन घर का त्याग कर परमात्मा की खोज में निकल पड़े।
गुरु नानक को एक बार भागो मलिक नामक एक अमीर ने भोजन के लिए अपने घर आमंत्रित किया लेकिन नानक जानते थे कि वह गरीबों पर बहुत अत्याचार करता है, इसलिए उन्होंने भागो का निमंत्रण स्वीकार नहीं किया और एक मजदूर के निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भागो ने इसे अपना अपमान मानते हुए गुरु नानक को खूब खरी-खोटी सुनाई। भागो ने गुस्से से उबलते हुए सवाल किया कि मेरे स्वादिष्ट व्यंजनों से खून निकलता दिखाई देता है और उस मजदूर की बासी रोटियों से …? ‘दूध। और अगर विश्वास न हो तो स्वयं आजमाकर देख लो।’ नानक ने कहा।
घमंड व क्रोध से सराबोर भागो ने अपने घर से स्वादिष्ट व्यंजन मंगवाए और उस मजदूर के घर से बासी रोटी। तब नानक ने एक हाथ में भागो के स्वादिष्ट व्यंजन लिए और दूसरे में मजदूर के घर की बासी रोटी और दोनों हाथों को एक साथ दबाया। जब वहां उपस्थित लोगों ने देखा कि मजदूर की बासी रोटी से दूध की धार निकल रही है जबकि भागो के स्वादिष्ट व्यंजनों से खून की धार तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। यह देख भागो का अहंकार चूर-चूर हो गया और वह गुरु नानक के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा।
गुरु नानक एक बार हरिद्वार पहुंचे तो उन्होंने देखा कि बहुत से लोग गंगा में स्नान करते समय अपनी अंजुली में पानी भर-भरकर पूर्व दिशा की ओर उलट रहे हैं। उन्होंने विचार किया कि लोग किसी अंधविश्वास के कारण ऐसा कर रहे हैं। तब उन्होंने लोगों को वास्तविकता का बोध कराने के उद्देश्य से अपनी अंजुली में पानी भर-भरकर पश्चिम दिशा की ओर उलटना शुरू कर दिया। जब लोगों ने काफी देर तक उन्हें इसी प्रकार पश्चिम दिशा की ओर पानी उलटते देखा तो उन्होंने पूछ ही लिया कि भाई तुम कौन हो और पश्चिम दिशा में जल देने का तुम्हारा क्या अभिप्राय है? नानक ने उन्हीं से पूछा कि पहले आप लोग बताएं कि आप पूर्व दिशा में पानी क्यों दे रहे हैं?
लोगों ने कहा कि वे अपने पूर्वजों को जल अर्पित कर रहे हैं ताकि उनकी प्यासी आत्मा को तृप्ति मिल सके। इस पर नानक ने पूछा कि तुम्हारे पूर्वज हैं कहां? लोगों ने जवाब दिया कि वे परलोक में हैं लेकिन तुम पश्चिम दिशा में किसे पानी दे रहे हो? गुरु नानक बोले कि यहां से थोड़ी दूर मेरे खेत हैं। मैं यहां से अपने उन्हीं खेतों में पानी दे रहा हूं। लोग आश्चर्यचकित होकर पूछने लगे, ‘खेतों में पानी! पानी खेतों में कहां जा रहा है? ’
गुरु नानक ने उनसे पूछा कि यदि पानी नजदीक में ही मेरे खेतों तक नहीं पहुंच सकता तो इस प्रकार आपके द्वारा दिया जा रहा जल इतनी दूर आपके पूर्वजों तक कैसे पहुंच सकता है? लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे गुरु जी के चरणों में गिरकर प्रार्थना करने लगे कि उन्हें सही मार्ग दिखलाएं। गुरु नानक सदैव मानवता के लिए जीए और जीवनपर्यन्त शोषितों व पीड़ितों के लिए संघर्षरत रहे।
उनकी वाणी को लोगों ने परमात्मा की वाणी माना और इसीलिए उनकी यही वाणी उनके उपदेश एवं शिक्षाएं बन गई। ये उपदेश किसी व्यक्ति विशेष, समाज, सम्प्रदाय अथवा राष्ट्र के लिए ही नहीं बल्कि चराचर जगत एवं समस्त मानव जाति के लिए उपयोगी हैं। ‘एक पिता एकस के हम बारिक’ नामक उनका सिद्धांत समाज में ऊंच-नीच और अमीर-गरीब के भेद को मिटाता है।