देवी भागवत पुराण के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्रि आते हैं, जब मां दुर्गा का पूजन किया जाता है। चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रि के बारे में हर कोई जानता है और शक्ति की उपासना करता है, लेकिन माघ और आषाढ़ माह के नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। मान्यता है कि इस नवरात्रि में जितना अपनी साधना को गुप्त रखा जाए उतना ही शुभ होता है। गुप्त नवरात्रि के व्रत के लिए एक प्रचलित कथा के अनुसार माना जाता है कि एक समय ऋषि श्रृंगी अपने भक्तजनों को दर्शन दे रहे थे और वहां एक परेशान स्त्री भीड़ से आई और अपनी व्यथा ऋषि को सुनाने लगी। उसने बताया कि उसके पति हमेशा बुरे कर्मों से घिरे रहते हैं। इसी कारण से वो भक्ति नहीं कर पाती है। धर्म के किसी कार्य में उसके पति साथ नहीं देते हैं और ना ही उसे करने देते हैं।

पति के कर्मों से परेशान स्त्री ने ऋषि श्रृंगी को बताया कि वो ऋषियों के हिस्से का निकाला हुआ अन्न भी उन्हें समर्पित नहीं कर पाती है। स्त्री ने बताया कि उसका पति मांस का सेवन, जुआ खेलता है, लेकिन मैं मां दुर्गा की भक्त हूं और उनका पूजन करना चाहती हूं और भक्ति-साधना से अपने परिवार के कर्मों को सुधारना चाहती हूं। ऋषि श्रृंगी स्त्री के इस आचरण से प्रसन्न होते हैं और उस उपाय बताते हुए कहते हैं कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों को हर कोई जानता है, लेकिन माघ और आषाढ़ माह के नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। देवी दुर्गा की आराधना इन नौ दिनों में गुप्त रुप से की जाती है।

ऋषि ने बताया कि प्रकट नवरात्रों में 9 देवियों का पूजन किया जाता है और गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की साधना होती है। गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है। इन नवरात्रों में की गई माता की आराधना से व्यक्ति का जीवन सफल हो सकता है। ऋषि ने बताया कि लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा-पाठ नहीं करने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रि में माता की पूजा करता है तो उसके जीवन के सभी पाप माफ हो जाते हैं। स्त्री ने ऋषि द्वारा बताए गए उपायों से विधि पूर्वक गुप्त नवरात्रि में पूजन किया और इसके बाद उसका पापी पति धर्म के रास्ते पर चलने लगा और उसके परिवार में सुख-शांति रहने लगी।

पूजा विधि-
प्रकट नवरात्रि की तरह गुप्त नवरात्रि में भी पूजा और पूजा विधि का महत्व माना जाता है। इसमें भी सबसे पहले दिन के समय घट स्थापना की जाती है, लेकिन प्रकट नवरात्रि में पूजा का समय दिन का होता है और गुप्त नवरात्रि में विशेष रुप से रात्रि में पूजन किया जाता है। गुप्त नवरात्रि के नौ दिनों में तांत्रिक शक्तियों को बढ़ावा दिया जाता है। इन नवरात्रि में नौ दिन पूजा-पाठ करने के बाद अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं को भोज करवाया जाता है।