सुनील दत्त पांडेय

वैदिक काल में चार ही प्रमुख राष्ट्रीय पर्व मनाने की व्यवस्था की गई थी। पंचांग के अनुसार श्रावणी पर्व से भारतीय पर्वों की शुरुआत की गई। पहला श्रावणी पर्व मनाया जाता है, जो राष्ट्र की आध्यात्मिक शक्ति और ज्ञान के सृजन और संयोजन का पर्व था। दूसरा विजयदशमी है, जो राष्ट्र के शौर्य को सुसज्जित करने का पर्व माना जाता है।

राष्ट्र की आर्थिक तरक्की और वैभवशाली व्यवस्था के लिए तृतीय पर्व दीपावली के रूप में महालक्ष्मी को प्रसन्न करने की खातिर मनाया जाता है और चौथा पर्व होली पर्व सामाजिक समरसता और भेदभाव को दूर करने के लिए मनाए जाने की परंपरा है, इसमें समाज के सभी लोग सामूहिक रूप से सम्मिलित होकर मानवता का संदेश देते हैं।

राष्ट्र-धर्म-आत्म रक्षा का पर्व है श्रावणी महापर्व

श्रावणी महापर्व पर यज्ञोपवीत और रक्षासूत्रों को वैदिक और पौराणिक मंत्रों के द्वारा अभिमंत्रित किया जाता है। मंत्रों से अभिमंत्रित किए जाने वाले रक्षा सूत्र और यज्ञोपवीत के धागे के सूत्र आत्मरक्षा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के तीनों सूत्रों से संकल्पबद्ध होते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावणी पर्व के दिन लोग नदी में खड़े होकर वैदिक और पौराणिक परंपराओं का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करते हुए राष्ट्र रक्षा-धर्म रक्षा के लिए हेमाद्रि संकल्प लेते हैं यानी हिमालय जैसा महान संकल्प। इस हेमाद्रि संकल्प के समय अपने राष्ट्र के पर्वतों, नदियों और वनों का स्मरण करते हुए महान प्राचीन विरासत और राष्ट्र की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने का संकल्प लेते हैं और इस संकल्प के उपरांत वेद मंत्रों से अभिमंत्रित यज्ञोपवीत धारण कर हाथ की कलाई में रक्षासूत्र बांधा जाता है।

वैसे कई सदियों से रक्षा बंधन का पर्व भाई-बहन के स्नेह के पर्व के रूप में बनाने की परंपरा चल रही है इस तरह श्रावणी पर्व भारत की विराट आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परंपरा का संकल्प दिवस बन गया है।

गुरुकुलों में शिक्षा शुभारंभ का पर्व है श्रावणी पूर्णिमा

वैदिक रीति रिवाज से स्थापित गुरुकुलों में श्रावणी पर्व के दिन से ही ऋषि-मुनि वेद पारायण यानी शिक्षा का शुभारंभ किया जाता था और आज भी गुरुकुलों में आचार्य लोग यज्ञ-अनुष्ठान का आयोजन करते हैं और गुरुकुल शिक्षण संस्थानों में श्रावणी पर्व के दिन विद्यार्थी गुरुकुल में प्रवेश लेते हैं, जिन विद्यार्थियों का यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ है उनका इस दिन यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है।

इस तरह से श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा ,आर्य समाज, गायत्री तीर्थ शांतिकुंज और पतंजलि योगपीठ जैसी संस्थाएं आज भी इस परंपरा का निर्वहन सुचारु रूप से कर रही हैं क्योंकि श्रावणी पर्व को स्वर्णिम वैदिक शास्त्रों की भाषा संस्कृत के संवर्धन का भी पर्व माना जाता है। देव-वेद वाणी संस्कृत भाषा का दिवस मनाने के लिए श्रावणी पूर्णिमा का दिन ही चुना गया क्योंकि इसका संबंध भारत और उसके शाश्वत धर्म से है।

पुरातन काल से चले आ रहे इस श्रावणी पर्व का सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक विशेष महत्त्व है। प्राचीन काल में श्रावण मास में विद्वान लोग वैदिक शास्त्रों का श्रवण किया करते थे और अपने आध्यात्मिक ज्ञान को और अधिक विस्तृत करते थे।

आध्यात्मिक शास्त्रों के गूढ़ तत्त्वों का श्रवण करना श्रावणी पर्व का मुख्य ध्येय होता था। यह पर्व वेदों के स्वाध्याय का पावन पर्व माना जाता है जिसे ऋषि तर्पण का नाम भी दिया गया है। तर्पण का अर्थ है ज्ञान और सत्य विद्या के मर्मज्ञ ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है जिनसे हमें वैदिक रहस्य को जानने व समझने का ज्ञान प्राप्त हुआ श्रावणी पर्व आत्मशुद्धि का पर्व भी माना है। वैदिक परंपरा अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण पर्व माना गया है।

आत्म शुद्धि-आत्म चिंतन का महापर्व

ज्योतिषाचार्य और श्री नारायण शिला तीर्थ स्थल हरिद्वार के मुख्य पुरोहित मनोज कुमार त्रिपाठी के अनुसार श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला श्रावणी उपाकर्म सबसे बड़ा पर्व है। वैदिक काल से पवित्र नदियों व तीर्थ के तट पर आत्मशुद्धि और आत्म चिंतन का यह उत्सव मनाया जा रहा है, इस कर्म में आंतरिक व बाह्य शुद्धि गाय का गोबर, मिट्टी, भस्म, अपामार्ग, दूर्बा, कुशा एवं मंत्रों द्वारा की जाती है और पंचगव्य को वेद शास्त्रों में महा औषधि माना गया है।

श्रावणी महापर्व के दिन गाय के दूध, दही, घृत, गोबर, गोमूत्र से शरीर के अंत:करण को शुद्ध किया जाता है। मान्यता है कि श्रावणी पूर्णिमा के दिन के चन्द्रमा अपनी संपूर्ण कलाओं से युक्त हो करके अमृत प्रदान करता है।

श्रावणी पर्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावणी पर्व के दिन लोग नदी में खड़े होकर वैदिक और पौराणिक परंपराओं का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करते हुए राष्ट्र रक्षा-धर्म रक्षा के लिए हेमाद्रि संकल्प लेते हैं यानी हिमालय जैसा महान संकल्प।

देव-वेद वाणी संस्कृत भाषा का दिवस मनाने के लिए श्रावणी पूर्णिमा का दिन ही चुना गया क्योंकि इसका संबंध भारत और उसके शाश्वत धर्म से है। पुरातन काल से चले आ रहे इस श्रावणी पर्व का सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक विशेष महत्त्व है। ज्योतिषाचार्य और श्री नारायण शिला तीर्थ स्थल हरिद्वार के मुख्य पुरोहित मनोज कुमार त्रिपाठी के अनुसार श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला श्रावणी उपाकर्म सबसे बड़ा पर्व है। वैदिक काल से पवित्र नदियों व तीर्थ के तट पर आत्मशुद्धि और आत्म चिंतन का यह उत्सव मनाया जा रहा है।