मनुष्य को रत्नों का चुनाव बहुत ही सावधानी से करना चाहिए। रत्न केवल शोभा बढ़ाने का साधन नहीं है बल्कि उनमें अलौलिक शक्ति का समावेश है। साथ ही रत्नों में मानव जीवन को सुखमय, उल्लासपूर्ण बनाने की अप्रतिम क्षमता भी है। आज हम बात करने जा रहे हैं ऐसे रत्न के बारे में जिसका संबंध शनि, राहु और केतु तीनों ग्रहों से है और यह रत्न है लाजवर्त। रत्न शास्त्र में इस रत्न का संबंध तीनों ग्रहों से बताया गया है। 

शनि के लिए नीलम (Neelam Stone), राहु के लिए गोमेद (Gomed Stone) और केतु के लिए लहसुनिया रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिर्फ आप लाजवर्त रत्न पहनकर ही आप इन तीनों ग्रहों से शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं कैसा होता है लाजवर्त और इसको धारण करने की सही विधि…

जानिए, कैसा होता है लाजवर्त रत्न:

लाजवर्त रत्न का रंग गहरा नीला होता है। इसमें हल्के नीले रंग की धारियां भी नजर आती हैं। इसका रंग मोर की गर्दन के नीले रंग की तरह ही होता है। मान्यता है कि इसे धारण करने से शनि, राहु, केतु तीनों ही ग्रह मजबूत होते हैं। ये रत्न अफगानिस्तान, यूएसए और सोवियत रूस में भी पाया जाता है।

लाजवर्त धारण करने के लाभ:

इस उपरत्न को धारण करने से मानसिक क्षमता का विकास होता है। मस्तिष्क शांत रहता है। साथ ही मस्तिष्क में स्पष्टता रहती है। वहीं पुरुषार्थ का विकास होता है। इसके साथ ही अध्यापन कार्य से जुडे़ व्यक्तियों के लिए यह उपरत्न उनकी क्षमताओं में वृद्धि करता है और वह अपने कार्य पर अपना पूर्ण ध्यान केन्द्रित करते हैं। इस रत्न के प्रयोग से एकाग्रता में वृद्धि होती है। चीजों को याद रखने की आदत में इजाफा होता है। मनोविज्ञान से संबंधित कामों में भी इसका फायदा है। साथ ही जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं उनके कमरे में इस रत्न का उपयोग करना बेहतर होता है। यह रत्न बौद्धिकता और ज्ञान में वृद्धि कराने का कारक होता है। वहीं कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए इस रत्न का उपयोग भी किया जाता है। इस रत्न को धारण करने से पितृ दोष शांत होता है।

कौन कर सकता है लाजवर्त को धारण:

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में शनि सकारात्मक (उच्च) के विराजमान हो, वो लोग लाजवर्त को धारण कर सकते हैं। साथ ही मकर और कुंभ राशि, लग्न वाले लाजवर्त धारण कर सकते हैं। वहीं अगर जन्मकुंडली में राहु- केतु सकारात्मक (उच्च) के स्थित हों तो भी लाजवर्त धारण किया जा सकता है।

कैसे करें धारण:

इसे शनिवार के दिन चांदी की अंगूठी या लॉकेट में बनवाकर धारण करना चाहिए। इस रत्न की माला और ब्रेसलेट भी पहना जा सकता है। इसे दायें हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए। इसे पहनने से पहले सरसों या तिल के तेल में पांच घंटे पहले डुबोकर रखें। इसके बाद नीले कपड़े पर रखकर ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: मंत्र की एक माला जाप करें। धूप-दीप, नैवेद्य कर इसे कपड़े से पोंछकर शुभ समय में धारण करें।

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