Gangaur 2020 Puja Vidhi, Vrat Katha, Shubh Muhurat, Samagri, Mantra: गणगौर पूजा हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तो को की जाती है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाएं रखती हैं। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति को बताये बिना व्रत रखती हैं। अविवाहित कन्याएं मनोवांछित वर प्राप्त करने के लिए गणगौर पूजा करती हैं। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। जानिए इस पर्व के पीछे की पौराणिक कथा, महत्व, पूजा विधि और संबंधित सभी जानकारी…

Gangaur Vrat Kahta (गणगौर व्रत कथा): गणगौर व्रत की पूरी कथा, यहां से पढ़ें

ऐसे की जाती है गणगौर पूजा: यह पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष की तृतीया से प्रारंभ हो जाता है जो चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तक चलता है। इस दिन कन्याएं और विवाहित स्त्रियां मिट्टी के शिव जी यानी की गण औप माता पार्वती यानी की गौर बनाकर उनका पूजन करती हैं। यह त्योहार मुख्य तौर पर राजस्थान में मनाया जाता है। सोलह दिन तक महिलाएं सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाकर दूब व फूल चुन कर लाती हैं। इस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी गणगौर माता को देती हैं। चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाया जाता है और दूसरे दिन यानी चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन इनका विसर्जन किया जाता है।

गणगौर व्रत व पूजा विधि: सुहागिनें इस दिन दोपहर तक व्रत रखती हैं व कथा सुनती हैं, नाचते गाते खुशी से पूजा-पाठ कर इस पर्व को मनाती हैं। चैत्र शुक्ल द्वितीया को किसी पवित्र तीर्थ स्थल या पास के सरोवर में गौरीजी को स्नान करवायें। तृतीया के दिन गणगौर माता को सजा-धजा कर पालने में बैठाकर नाचते गाते उनकी शोभायात्रा निकालते हुए उन्हें विसर्जित किया जाता है। उपवास भी इसके पश्चात ही तोड़ा जाता है। मान्यता है कि गौरीजी स्थापना जहां होती है वह उनका मायका होता है और जहां विसर्जन किया जाता है वह ससुराल। इस दिन गणगौर माता को फल, पूड़ी, गेहूं चढ़ाये जाते हैं। इस दिन कवारी लड़कियां और विवाहत स्त्रियां दो बार गणगौर का पूजन करती हैं। दूसरी बार की पूजा में शादीशुदा स्त्रियां चोलिया रखती हैं, जिसमें पपड़ी या गुने रखे जाते हैं। इसमें 16 फल खुद के, सोलह भाई के, सोलह जवाई के और सोलह फल साल के होते हैं। चोले के ऊपर साड़ी व सुहाग का समान रखा जाता है। शाम में सूरज ढलने के बाद गाजे बाजे के साथ गणगौर को विसर्जित किया जाता है और जितना चढ़ावा होता है उसे माली को दे दिया जाता है। गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते हैं।

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23:36 (IST)27 Mar 2020
घर में ऐसे करें गणगौर पूजा

चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन अपनी पूजी हुई गणगौरों को वे पानी पिलाती हैं और अगले दिन यानी आज शुक्ल पक्ष की तृतीया को सांयकाल के समय उन गणगौरों का विसर्जन कर देती हैं. गणगौरों के पूजा स्थल गणगौर का पीहर और विसर्जन स्थल ससुराल माना जाता है. लेकिन इस वर्ष 2020 को वैश्विक संक्रमण कोरोना वायरस से सर्तकता को देखते हुए पूजा पाठ से जुड़ी तमाम क्रियाकलापों को घर के अंदर रहकर ही किया जाएगा. गणगौरों का विसर्जन भी इस वर्ष बाहर किसी नदी या तालाबों पर न जाकर घर के कैम्पस के अंदर या अपने- अपने छतों पर भी कर सकते हैं.

22:36 (IST)27 Mar 2020
गणगौर की पुरातन कथा

एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती एवं नारद जी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए. वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे. उनका आना सुनकर ग्राम कि निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरंत पहुंच गई. पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया.वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी.थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने चांदी के थालो में सजाकर सोलह श्रृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंची. इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया. अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है.इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा. किंतु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रख दूंगी, इससे वो मेरे सामान सौभाग्यवती हो जाएंगी. जब इन स्त्रियों ने शिव पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया.

21:24 (IST)27 Mar 2020
16 दिनों तक मनाया जाता है गणगौर पूजन का पर्व...

सोलह दिन तक महिलाएं सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती हैं। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सांयकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। जहां पूजा की जाती है उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहाँं विसर्जन किया जाता है वह स्थान को ससुराल माना जाता है।

20:31 (IST)27 Mar 2020
होली के दिन से गणगौर पूजा की हो जाती है शुरुआत...

राजस्थान में जब महिलाएं शादी के बाद होली में मायके में आती हैं तो बड़े धूमधाम इस पर्व को मनाकर सुहाग के जीवन की मंगलकामना करती हैं। गणगौर में पारंपिक गीतों के साथ ईसर (शिव) और मां पार्वती का पूजन किया जाता है। धुलंडी के दिन होली की राख से सोलह गणगौर बनाकर सोलह दिन तक पूजा की जाती है। इसके बाद चैत्र मास की तृतिया तिथि को प्रतिमाओं को तालाब में विसर्जन करने की मान्यता है। अगर आप कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से बाहर नहीं जा पा रहे हैं तो घर के ही किसी कोने में छोटा सा कुंड बनाकर प्रतिमाओं को विसर्जित कर सकती हैं।

20:05 (IST)27 Mar 2020
गणगौर व्रत समापन पूजन विधि :

* जवारों को ही देवी गौरी और शिव का रूप मान एकादशी से उनकी पूजा होती है.* चैत्र शुक्ल द्वितीया को गौरी पूजन का महत्व है,विधिपूर्वक पूजन करनी चाहिए.* सुहाग की सामग्री को विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है.* इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाकर गौरीजी की कथा पढ़ी जाती है.* गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी माँग भरनी चाहिए.* कुँआरी कन्याओं को गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए* चैत्र शुक्ल द्वितीय को गौरीजी को किसी नदी या तालाब पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएँ.* चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाया.* शाम को महिलाएँ अपने द्वारा बनाए गए गौरी व शिव को अपने घर के किसी उपलब्ध हिस्से में ही एक कुंड बना कर विधिपूर्वक पूजन कर गणगौर विसर्जित करें.

18:02 (IST)27 Mar 2020
गणगौर की व्रत कथा

पार्वती जी ने कहा तुम सब वस्त्र आभूषणों का परित्याग कर, माया मोह से रहित होओ और तन, मन, धन से पति की सेवा करो.तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी. इसके बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई. स्नान करने के पश्चात बालू की शिव जी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया,भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया. उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा.भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्धान हो गए.इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया. पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहां पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थी.शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली मेरे भाई भावज नदी किनारे मिल गए थे. उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया.

16:48 (IST)27 Mar 2020
गणगौर की पौराणिक मान्यता

एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को सदा सुहागन रहने का वरदान दिया था। वहीं, माता पार्वती ने सभी सुहागन स्त्रियों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया। महिलाएं ये पूजा अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं।

16:08 (IST)27 Mar 2020
गणगौर पूजा का महत्व

गणगौर पूजा भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है और यह बहुत ही श्रद्धा भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है. होली के दूसरे दिन से शुरू यह पर्व पूरे 16 दिन तक मनाया जाता है. सिर्फ राजस्थान में ही नहीं यूपी, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश समेत पूरे भारत में इसके रंग देखने को मिलते हैं. यह पर्व चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को समाप्त होता है. इस दिन कुंवारी कन्याएं और महिलाएं मिट्टी से गौर बनाकर, उनको सुंदर पोषाक पहनाकर शृंगार करती हैं और खुद भी संवरती हैं. कुंवारी कन्याएं इस व्रत को मनपसंद वर पाने की कामना से करती है, तो वहीं विवाहित महिलाएं इसे पति की दीर्घायु की कामना करती हैं. महिलाएं 16 शृंगार, खनकती चूड़ियां और पायल की आवाज के साथ बंधेज की साड़ी में नजर आती हैं.

14:51 (IST)27 Mar 2020
गणगौर कब मनाया जाता है?

हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्लौ तृतीया का दिन गणगौर के रूप में मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह पर्व हर साल मार्च या अप्रैल के महीने में आता है। इस बार गणगौर 27 मार्च को है। 

14:14 (IST)27 Mar 2020
गणगौर गीत...

ऊँचों चँवरो चौकुटो, जल जमना रो नीर मँगावो जी,
जठे ईसरदासजी सापड्या (विराजे हैँ), बहू गोराँ ने गोर पुजावो जी,
जठे कानीरामजी सापड्या बहु लाडल ने गोर पुजावो जी,
जठे सूरजमलजी सापड्या, बाई रोवाँ ने गोर पुजावो जी,
गोर पूजंता यूँ कैवे सायब या जोडी इभ् छल (इसी तरह) राखो जी,
या जोडी इभ् छल राखो जी म्हारा चुडला रो सरव सोहागो जी,
या जोडी इभ छल राखो जी म्हारै चुडला रे राखी बाँधो जी ।

13:34 (IST)27 Mar 2020
घर पर ऐसे करें गणगौर पूजा...

चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन अपनी पूजी हुई गणगौरों को वे पानी पिलाती हैं और अगले दिन यानी आज शुक्ल पक्ष की तृतीया को सांयकाल के समय उन गणगौरों का विसर्जन कर देती हैं. गणगौरों के पूजा स्थल गणगौर का पीहर और विसर्जन स्थल ससुराल माना जाता है. लेकिन इस वर्ष 2020 को वैश्विक संक्रमण कोरोना वायरस से सर्तकता को देखते हुए पूजा पाठ से जुड़ी तमाम क्रियाकलापों को घर के अंदर रहकर ही किया जाएगा. गणगौरों का विसर्जन भी इस वर्ष बाहर किसी नदी या तालाबों पर न जाकर घर के कैम्पस के अंदर या अपने- अपने छतों पर भी कर सकते हैं.

13:08 (IST)27 Mar 2020
गणगौर के गीत...

म्हारा हरिया ए जुँवारा राज कि लाँबा-तीखा सरस बढ्या,
म्हारा हरिया ए जुँवारा राज कि गँऊ लाल सरस बढ्या,
गोर-ईसरदासजी का बाया ए क बहु गोरल सीँच लिया,
गोर- कानीरामजी का बाया ए क बहु लाडल सीँच लिया,
भाभी सीँच न जाणोँ ए क जो पीला पड गया,
बाइजी दो घड सीँच्या ए क लाँबा-तीखा सरस बढ्या,
म्हारो सरस पटोलो ए क बाई रोवाँ पैर लियो,
गज मोतीडा रो हारो ए क बाई रोवाँ पैर लियो,
म्हारो दाँता बण्या चुडलो ए क बाई रोवाँ पैर लियो,
म्हारो डब्बा भरियो गैणोँ ए क बाई रोवाँ पैर लियो,
म्हारी बारँग चूँदड ए क बाई रोवाँ ओढ लेई,
म्हारो दूध भरयो कटोरो ए क बाई रोवाँ पी लियो,
बीरा थे अजरावण हो क होज्यो बूढा डोकरा,
भाभी सैजाँ मेँ पोढो ए क पीली पाट्याँ राज करे ।

12:35 (IST)27 Mar 2020
ये त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान में मनाया जाता है...

गणगौर एक त्योहार है जो चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह इस वर्ष 27 मार्च को है। गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है। इसमें कन्याएं और विवाहित स्त्रियां मिट्टी के शिव जी यानी की गण एवं माता पार्वती यानी की गौर बनाकर पूजन करती हैं। गणगौर के समाप्ति पर त्योहार धूम धाम से मनाया जाता है एवं झांकियां भी निकलती हैं। ये त्योहार राजस्थान में खासतौर से मनाया जाता है।

12:15 (IST)27 Mar 2020
16 दिनों तक मनाया जाता है गणगौर पूजन का पर्व...

सोलह दिन तक महिलाएं सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती हैं। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सांयकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। जहां पूजा की जाती है उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहाँं विसर्जन किया जाता है वह स्थान को ससुराल माना जाता है।

11:40 (IST)27 Mar 2020
गणगौर के गीत...

सोनी गढ़ को खड़को म्हे सुन्यो सोना घड़े रे सुनार
म्हारी गार कसुम्बो रुदियो
सोनी धड़जे ईश्वरजी रो मुदड़ो,
वांकी राण्या रो नवसर्‌यो हार म्हांरी गोरल कसुम्बो रुदियो
वातो हार की छोलना उबरी बाई
सोधरा बाई हो तिलक लिलाड़ म्हारे गोर कसुम्बो रुदियो।

11:23 (IST)27 Mar 2020
गणगौर व्रत समापन पूजन विधि :

* जवारों को ही देवी गौरी और शिव का रूप मान एकादशी से उनकी पूजा होती है.

* चैत्र शुक्ल द्वितीया को गौरी पूजन का महत्व है,विधिपूर्वक पूजन करनी चाहिए.

* सुहाग की सामग्री को विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है.

* इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाकर गौरीजी की कथा पढ़ी जाती है.

* गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी माँग भरनी चाहिए.

* कुँआरी कन्याओं को गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए

* चैत्र शुक्ल द्वितीय को गौरीजी को किसी नदी या तालाब पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएँ.

* चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाया.

* शाम को महिलाएँ अपने द्वारा बनाए गए गौरी व शिव को अपने घर के किसी उपलब्ध हिस्से में ही एक कुंड बना कर विधिपूर्वक पूजन कर गणगौर विसर्जित करें.

10:57 (IST)27 Mar 2020
शुभ मुहूर्त:-

तृतीया तिथि प्रारम्भ - मार्च 26, 2020 को 07:53 PM बजे

तृतीया तिथि समाप्त - मार्च 27, 2020 को 10:12 PM बजे

10:39 (IST)27 Mar 2020
गणगौर गीत, गाढ़ो जोती न रणु बाई आया...

गाढ़ो जोती न रणु बाई आया
यो गोडो कुण छोड़ोवे
गाढ़ो छोज्ञावे ईश्वरजी हो राजा
वे थारी सेवा संभाले
सेवा संभाले माता अगड़ घड़ावे, सासरिये पोचावे
सासरिये नहीं जाँवा म्हारी माता पिपरिया में रे वां
भाई खिलावां भतीजा खिलावां, तो भावज रा गुण गांवा

10:16 (IST)27 Mar 2020
गणगौर व्रत कथा...

एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती एवं नारद जी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए. वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे. उनका आना सुनकर ग्राम कि निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरंत पहुंच गई. पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया.वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी.थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने चांदी के थालो में सजाकर सोलह श्रृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंची. इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया. अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है.इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा. किंतु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रख दूंगी, इससे वो मेरे सामान सौभाग्यवती हो जाएंगी. जब इन स्त्रियों ने शिव पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया.

10:15 (IST)27 Mar 2020
गणगौर व्रत कथा...

पार्वती जी ने कहा तुम सब वस्त्र आभूषणों का परित्याग कर, माया मोह से रहित होओ और तन, मन, धन से पति की सेवा करो.तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी. इसके बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई. स्नान करने के पश्चात बालू की शिव जी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया,भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया. उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा.भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्धान हो गए.इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया. पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहां पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थी.शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली मेरे भाई भावज नदी किनारे मिल गए थे. उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया.

09:52 (IST)27 Mar 2020
गणगौर का महत्व...

गणगौर आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है. यह मनाया तो पूरे भारत में जाता है लेकिन राजस्थान में इसका विशेष महत्व है.गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं वहीं विवाहित महिलायें आज इस चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु होने की कामना करेंगी.

09:30 (IST)27 Mar 2020
गणगौर की पौराणिक मान्यता...

एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को सदा सुहागन रहने का वरदान दिया था। वहीं, माता पार्वती ने सभी सुहागन स्त्रियों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया। महिलाएं ये पूजा अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं।

08:53 (IST)27 Mar 2020
गणगौर पूजा सामग्री:

लकड़ी की चौकी/बाजोट/पाटा
ताम्बे का कलश
काली मिट्टी/होली की राख़
दो मिट्टी के कुंडे/गमले
मिट्टी का दीपक
कुमकुम, चावल, हल्दी, मेहन्दी, गुलाल, अबीर, काजल
घी
फूल,दुब,आम के पत्ते
पानी से भरा कलश
पान के पत्ते
नारियल
सुपारी
गणगौर के कपडे
गेहू
बॉस की टोकनी
चुनरी का कपड़ा

08:39 (IST)27 Mar 2020
होली के दिन से त्योहार की शुरुआत...

राजस्थान में जब महिलाएं शादी के बाद होली में मायके में आती हैं तो बड़े धूमधाम इस पर्व को मनाकर सुहाग के जीवन की मंगलकामना करती हैं। गणगौर में पारंपिक गीतों के साथ ईसर (शिव) और मां पार्वती का पूजन किया जाता है। धुलंडी के दिन होली की राख से सोलह गणगौर बनाकर सोलह दिन तक पूजा की जाती है। इसके बाद चैत्र मास की तृतिया तिथि को प्रतिमाओं को तालाब में विसर्जन करने की मान्यता है। अगर आप कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से बाहर नहीं जा पा रहे हैं तो घर के ही किसी कोने में छोटा सा कुंड बनाकर प्रतिमाओं को विसर्जित कर सकती हैं।

08:17 (IST)27 Mar 2020
गणगौर की पौराणिक मान्यता...

एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को सदा सुहागन रहने का वरदान दिया था। वहीं, माता पार्वती ने सभी सुहागन स्त्रियों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया। महिलाएं ये पूजा अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं।

07:58 (IST)27 Mar 2020
गणगौर पूजन के गीत (Gangaur Puja Geet):

गौर गौर गोमती, ईसर पूजे पार्वती,

पार्वती के आला तीला, सोने का टीला।

टीला दे टमका दे, बारह रानी बरत करे,

करते करते आस आयो, मास आयो,छटे चौमास आयो।

खेड़े खांडे लाडू लायो, लाडू बिराएं दियो,

बीरो गुट कयगो, चुनड उड़ायगो,

चुनड म्हारी अब छब, बीरो म्हारो अमर।

साड़ी में सिंगोड़ा, बाड़ी में बिजोरा,

रानियां पूजे राज में, मै म्हका सुहाग में।

सुहाग भाग कीड़ीएं, कीड़ी थारी जात है ,जात पड़े गुजरात है।

गुजरात में पानी आयो, दे दे खूंटियां तानी आयो, आख्यां फूल-कमल की डोरी।

07:46 (IST)27 Mar 2020
गणगौर पूजा में गाये जाते हैं लोकगीत...

गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की खूबसूरती हैं. इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के बाद अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं. राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म के रूप में भी प्रचलित है.गणगौर पूजन में कन्यायें और महिलायें अपने लिए अखंड सौभाग्य,अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं.

15:22 (IST)26 Mar 2020
अविवाहित लड़कियां भी रखती हैं ये व्रत...

राजस्थान का यह त्योहार 16 दिनों का होता है। जहां लड़कियां होली में शादी के बाद मायके आकर इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाकर अपने सुहाग की मंगलकामना करती हैं। अतः सुहागिनें भी उन्हीं के साथ प्रमुख पूजा में सहयोग कर अपने परिवार और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।  

14:24 (IST)26 Mar 2020
गणगौर पूजा में 16 अंक का होता है विशेष महत्व...

इस पूजा में 16 अंक का विशेष महत्व होता है. गणगौर के गीत गाते हुए महिलाएं काजल, रोली, मेहंदी से 16-16 बिंदिया लगाती हैं. गणगौर को चढ़ने वाले प्रसाद, फल व सुहाग की सामग्री 16 के अंक में ही चढ़ाई जाती. गणगौर का उत्सव घेवर और मीठे गुनों के बिना अधूरा माना जाता है. खीर, चूरमा, पूरी, मठरी से गणगौर को पूजा जाता है. आटे और बेसन के घेवर बनाए जाते हैं और गणगौर माता को चढ़ाए जाते हैं. गणगौर पूजन का स्थान किसी एक स्थान या घर में किया जाता है. गणगौर की पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा होते हैं.

13:29 (IST)26 Mar 2020
गणगौर पूजा का महत्व...

गणगौर पूजा भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है और यह बहुत ही श्रद्धा भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है. होली के दूसरे दिन से शुरू यह पर्व पूरे 16 दिन तक मनाया जाता है. सिर्फ राजस्थान में ही नहीं यूपी, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश समेत पूरे भारत में इसके रंग देखने को मिलते हैं. यह पर्व चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को समाप्त होता है. इस दिन कुंवारी कन्याएं और महिलाएं मिट्टी से गौर बनाकर, उनको सुंदर पोषाक पहनाकर शृंगार करती हैं और खुद भी संवरती हैं. कुंवारी कन्याएं इस व्रत को मनपसंद वर पाने की कामना से करती है, तो वहीं विवाहित महिलाएं इसे पति की दीर्घायु की कामना करती हैं. महिलाएं 16 शृंगार, खनकती चूड़ियां और पायल की आवाज के साथ बंधेज की साड़ी में नजर आती हैं.

13:29 (IST)26 Mar 2020
गणगौर पूजा का महत्व...

गणगौर पूजा भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है और यह बहुत ही श्रद्धा भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है. होली के दूसरे दिन से शुरू यह पर्व पूरे 16 दिन तक मनाया जाता है. सिर्फ राजस्थान में ही नहीं यूपी, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश समेत पूरे भारत में इसके रंग देखने को मिलते हैं. यह पर्व चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को समाप्त होता है. इस दिन कुंवारी कन्याएं और महिलाएं मिट्टी से गौर बनाकर, उनको सुंदर पोषाक पहनाकर शृंगार करती हैं और खुद भी संवरती हैं. कुंवारी कन्याएं इस व्रत को मनपसंद वर पाने की कामना से करती है, तो वहीं विवाहित महिलाएं इसे पति की दीर्घायु की कामना करती हैं. महिलाएं 16 शृंगार, खनकती चूड़ियां और पायल की आवाज के साथ बंधेज की साड़ी में नजर आती हैं.

13:04 (IST)26 Mar 2020
गणगौर व्रत कथा...

गणगौर व्रत का संबंध भगवान शिव और माता से है। शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव, माता पार्वती और नारद मुनि भ्रमण पर निकले। सभी एक गांव में पहुंचें। जब इस बात की जानकारी गांववालों को लगी तो गांव की संपन्न और समृद्धि महिलाएं तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाने की तैयारी में जुट गईं, ताकि प्रभु अच्छा भोजन ग्रहण कर सकें। वहीं गरीब परिवारों की महिलाएं पहले से ही उनके पास जो भी साधन थे उनको अर्पित करने के लिए पहुंच गई। ऐसे में उनकी भक्ति भाव से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन सभी महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क दिया। फिर थोड़ी देर में संपन्न परिवार की महिलाएं तरह-तरह के मिष्ठान और पकवान लेकर वहां पहुंची लेकिन माता के पास उनको देने के लिए कुछ नहीं बचा। इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि अब आपके पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा क्योंकि आपने सारा आशीर्वाद गरीब महिलाओं को दे दिया। ऐसे में अब आप क्या करेंगी।  तब माता पार्वती ने अपने खून के छींटों से उन पर अपने आशीर्वाद बांटे। इसी दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था

12:33 (IST)26 Mar 2020
ऐसे पूरा होता है गणगौर पूजा व्रत...

* चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं।

* इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएं और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें।

* इसी दिन शाम को उपवास भी छोड़ा जाता है।

12:33 (IST)26 Mar 2020
ऐसे पूरा होता है गणगौर पूजा व्रत...

* चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं।

* इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएं और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें।

* इसी दिन शाम को उपवास भी छोड़ा जाता है।

12:15 (IST)26 Mar 2020
ऐसे करनी चाहिए गणगौर की पूजा...

पूजा करते समय गौरी जी की स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, शीशा, काजल आदि चढ़ाएं। सुहाग की साम्रगी को चंदन, अक्षत, धूप-दीप से विधि पूर्वक पूजा की जाती है और मां गौरी को भोग लगाया जाता है।

11:46 (IST)26 Mar 2020
कोरोना के चलते नहीं जा पा रही हैं बाहर तो घर पर इस विधि से करें पूजा...

पूरा देश इस समय कोरोना महामारी से परेशान है। इसी के चलते पूरा देश लाकडाउन कर दिया गया है। इसी बीच गणगौर की पूजा भी शुरू हो गई है। जिसका समापन 27 मार्च को हो रहा है। राजस्थान और मध्य प्रदेश के आलवा उत्तर भारत के ज्यादातर जिलों में इसे मनाया जाता है। अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखा जाने वाला ये पर्व और इसकी पूजा दोनों ही खास होती है। इस दिन महिलाएं यमुना नदी में स्नान करती हैं। लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण आपको घर पर ही पूजा करनी पड़ेगी।

घर पर ऐसे करें पूजा:
चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया पर इस पूजा को किया जाता है। इस दिन महिलाएं नदी, सरोवर, तालाब या कुंड पर जाकर गणगौर को पानी पिलाती हैं। मगर इस बार आप बाहर नहीं जा पायेंगी तो इसके लिए आप घर के बगीचे या आंगन में ही छोटा सा कुंड बना लें। आप इसी से पूजा कर सकती हैं। 

11:14 (IST)26 Mar 2020
गणगौर पूजा कल, जानिए इस दिन गुप्त उपवास क्यों रखा जाता है...

यह पर्व मुख्य तौर पर राजस्थान में मनाया जाता है। इस बार गणगौर पूजा 27 मार्च को है। कोरोना वायरस के चलते भक्तों को घर पर ही विधि विधान के साथ पूजा करनी होगी। ये पर्व हर साल चैत्र शुक्ल तृतीया को आता है। गणगौर का अर्थ है,’गण’ और ‘गौर’। गण का तात्पर्य है शिव और गौर का अर्थ है पार्वती। गणगौर पूजन माँ पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है। जानिए इस दिन महिलाएं गुप्त रूप से क्यों रखती हैं उपवास

10:58 (IST)26 Mar 2020
गणगौर पूजा का महत्व...

पर्व का महत्व: महिलाओं के लिए ये अखंड सौभाग्य की प्राप्ति का पर्व है। विवाहित स्त्रियां इस पर्व को अपने पति की मंगल कामना और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मनाती हैं। अविवाहित लड़कियां भी इस दिन गणगौर की पूजा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इसकी कृपा से उन्हें मन चाहा वर प्राप्त हो जाता है।

10:30 (IST)26 Mar 2020
गणगौर माता के गीत...

(1) गारा की गणगौर 
 
गारा की गणगौर कुआ पर क्यों रे खड़ी है।
सिर पर लम्बे-लम्बे केश, गले में फूलों की माला पड़ी रे।। गारा की गणगौर...
 
चल्यो जा रे मूरख अज्ञान, तुझे मेरी क्या पड़ी रे।
म्हारा ईशरजी म्हारे साथ, कुआ पर यूं रे खड़ी रे।। गारा की गणगौर...
 
माथा ने भांवर सुहाय, तो रखड़ी जड़ाव की रे।
कान में झालज सुहाय, तो झुमकी जड़ाव की रे।। गारा की गणगौर...
 
मुखड़ा ने भेसर सुहाय, तो मोतीड़ा जड़ाव का रे।
हिवड़ा पे हांसज सुहाय, तो दुलड़ी जड़ाव की रे।। गारा की गणगौर...
 
तन पे सालू रंगीलो, तो अंगिया जड़ाव की रे।
हाथों में चुड़ला पहना, तो गजरा जड़ाव का रे।। गारा की गणगौर...
 
पावों में पायल पहनी, तो घुंघरू जड़ाव का रे।
उंगली में बिछिया सुहाय, तो अनवट जड़ाव का रे।। गारा की गणगौर...

10:15 (IST)26 Mar 2020
गणगौर पूजा की कथा...

एक बार की बात है कि भगवान शिव शंकर और माता पार्वती भ्रमण के लिये निकल पड़े, उनके साथ में नारद मुनि भी थे। चलते-चलते एक गांव में पंहुच गये उनके आने की खबर पाकर सभी उनकी आवभगत की तैयारियों में जुट गये। कुलीन घरों से स्वादिष्ट भोजन पकने की खुशबू गांव से आने लगी। लेकिन कुलीन स्त्रियां स्वादिष्ट भोजन लेकर पंहुचती उससे पहले ही गरीब परिवारों की महिलाएं अपने श्रद्धा सुमन लेकर अर्पित करने पंहुच गयी। माता पार्वती ने उनकी श्रद्धा व भक्ति को देखते हुए सुहाग रस उन पर छिड़क दिया।